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भारत व भारीतयता के अनन्य भक्त थे ब्रिटिश पादरी सी.एफ. एण्ड्रयूज़



 




 


भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश पादरी सी.एफ. एण्ड्रयूज़ का रहा महत्त्वपूर्ण योगदान

आज कल देश के कुछ मुट्ठी भर दुश्मन अपनी बेबुनियाद ब्यानबाज़ियों से भारत की सांप्रदायिक एकता व आपसी सौहार्द को ख़तरा बने हुए हैं और दुःख की बात यह है कि उच्चतम पदों से लेकर एक पुलिस कांस्टेबल तक उन्हें कुछ नहीं कह पाता, क्योंकि उन्हें शरेआम उच्च अधिकारियों व मंत्रियों-संत्रियों का कथित प्रोत्साहन होता है। अगर कभी भूले-भटके से कभी ऐसा कोई अधिकारी या मंत्री अल्प-संख्यकों के पक्ष में ब्यान दे भी देता है, तो वह महज़ दिखावा मात्र होता है। आज-कल वैसे तो इन देश-विरोधी शक्तियों ने एक अन्य धर्म-विशेष को अपना निशाना बना रखा है परन्तु वह कभी-कभार मसीहियत पर भी अपनी आपत्तिजनक टिप्पणियां कर जाते हैं।

130 करोड़ से अधिक की जनसंख्या वाले देश भारत में ऐसी देश-विरोधी सांप्रदायिक ताकतों की संख्या बहुत मुश्किल से एक लाख होगी अर्थात एक प्रतिशत से भी कम। परन्तु जैसे एक मछली सारे तालाब को गन्दा करके रख देती है, वैसे ही यह लोग अपनी ऐसी गन्दी राजनीतियों से देश का माहौल तो ख़राब करते हैं, साथ में उन लाखों भारतियों के बारे में भी नहीं सोचते कि यदि किसी सरफिरे समाज-विरोधी अनसर ने उधर प्रतिक्रम के तौर उन पर कुछ उल्टा-सीधा करना शुरु कर दिया, तो फिर क्या होगा?

ऐसे माहौल में आज हम एक ऐसे विदेशी मसीही मिशनरी सी.एफ. एण्ड्रयूज़ के जीवन संबंधी जानेंगे - जिनका जीवन यदि एक तराज़ू के पलड़े में रखा जाए तो वह अकेले ही देश के इन लाखों सांप्रदायिक दुश्मनों के मुकाबले में भारी पड़ेंगे - क्योंकि एक ब्रिटिश नागरिक होने के बावजूद भारतीय स्वतंत्रता योगदान में जितना योगदान श्रीएण्ड्रयूज़ का है, उतना और किसी का नहीं है। उन्होंने भारत के हज़ारों मसीही लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में कूदने हेतु प्रोत्साहित किया था।

चार्ल्स फ़रियर एण्ड्रयूज़, जिन्हें सी.एफ. एण्ड्रयूज़ के नाम से अधिक जाना जाता है, वैसे तो चर्च ऑफ़ इंगलैण्ड के पादरी थे परन्तु भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वह भारत में एक शिक्षा शास्त्री तथा समाज सुधारक के तौर पर भी पूर्ण सक्रियतापूर्वक कार्य करते रहे।

गोखले जी के कहने पर गांधी जी को दक्षिण अफ्ऱीका से वापिस लाए थे सी.एफ. एण्ड्रयूज़

CF Andrews महात्मा गांधी जी के बहुत करीबी मित्र बन गए थे सी.एफ. एण्ड्रयूज़। श्री सी.एफ. एण्ड्रयूज़ ही वह मुख्य शख़्सियत थे, जिनके कहने पर गांधी जी दक्षिण अफ्ऱीका से भारत वापिस आए थे और श्री एण्ड्रयूज़ को यह कार्य सौंपने में गोपाल कृष्ण गोखले जी की भूमिका मुख्य रही थी। गांधी जी तब दक्षिण अफ्ऱीका में रहने वाले भारतीयों के नागरिक अधिकारों के लिए वहां की सरकार से अहिंसापूर्वक सीधी टक्कर ले रहे थे।

भारतीय मसीही समुदाय को बड़े स्तर पर स्वतंत्रता संगाम में भाग लेने हेतु प्रेरित किया था सी.एफ. एण्ड्रयूज़ ने

वह भी श्री सी.एफ. एण्ड्रयूज़ ही थे, जिन्होंने भारत के मसीही समुदाय को इण्डियन नैश्नल कांग्रेस तथा स्वतंत्रता संग्राम में तन-मन-धन से भाग लेने हेतु प्रेरित किया था। उनकी महानता यह थी कि वह गांधी जी की तरह सत्य के साथ खड़े होना बाख़ूबी जानते थे। उन्हें लगता था कि अत्याचारी एवं पक्षपातपूर्ण ब्रिटिश सरकार का साथ देने के स्थान पर भारतीय लोगों को अपनी स्वतंत्रता हेतु जागरूक एवं प्रेरित करने से परमेश्वर अधिक प्रसन्न होंगे। श्री एण्ड्रयूज़ अनेकों बार भारतीय की मांगों को लेकर तत्कालीन वॉयसरायों के पास जाते रहे थे। उन्हें भारत में प्यार से ‘क्राईस्ट फ़ेथफ़ुल एपौस्सल’ (यीशु मसीह के विश्वासपात्र प्रेरित) भी कहा जाता था। उन्हें ‘देशबन्धु’ (ग़रीबों का मित्र) का ख़िताब भी दिया गया था।


मसीही सिद्धांतों के आधार पर की थी एण्ड्रयूज़ ने राष्ट्रवाद की परिभाषा

सी.एफ. एण्ड्रयूज़ ने भारत में राष्ट्रवाद की परिभाषा एवं व्याख्या मसीही सिद्धांतों के आधार पर की थी। उन्होंने अपने अनेक लेखों एवं पुस्तकों द्वारा भारत के मसीही लोगों को अपनी स्वतंत्रता के लिए जूझ-मरने की प्रेरणा दी थी। आगरा में एक बार ‘वर्ल्ड’ज़ क्रिस्चियन ऐण्डैवर’ कनवैन्शन को संबोधित करते हुए श्री एण्ड्रयूज़ ने युवाओं को राष्ट्र हितों के लिए लड़ने की चुनौती देते हुए कहा थाः ‘‘अपने देश को यीशु मसीह को प्यार किए जाने की तरह प्यार करो।’’ पश्चिमी देशों से आए बहुत कम मसीही मिशनरियों में भारत के प्रति इतना प्यार एवं समर्पण देखने को मिलता है। श्री एण्ड्रयूज़ का मानना था कि ब्रिटिश शासन की ग़लत नीतियों के कारण ही समूह भारतीयों के मनों में राष्ट्रवाद की प्रचण्ड भावना पैदा हुई थी।


पादरी के बेटे थे, पादरी ही बने

श्री एण्ड्रयूज़ का जन्म 12 फ़रवरी, 1871 में इंग्लैण्ड के नॉथकम्बरलैण्ड में टाइने के न्यूकैसल में हुआ था। उनके पिता बर्मिंघम स्थित कैथोलिक एपौसटौलिक चर्च के ‘एन्जल’ अर्थात पादरी थे। उनके परिवार को उन्हीं के एक जानकार द्वारा दिए गए धोखे के कारण बहुत बड़ा आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ा था। श्री एण्ड्रयूज़ ने प्रारंभिक शिक्षा बर्मिंघम के किंग एडवर्ड’ज़ स्कूल में प्राप्त की थी तथा उच्च शिक्षा उन्होंने कैम्ब्रिज स्थित पैप्ब्रोक कॉलेज से ग्रहण की थी। समय के साथ वह अपने परिवार के चर्च से दूर होते चले गए और एक दिन वह चर्च ऑफ़ इंग्लैण्ड के पादरी बने। 1896 में वह डीकन बने थे तथा दक्षिण लन्दन में पैम्ब्रोक कॉलेज मिशन का चार्ज संभाल लिया। एक वर्ष पश्चात् वह पादरी बन गए थे। बाद में वह कैम्ब्रिज के वैस्टकॉट हाऊस थ्योलोजिकल कॉलेज के वाईस-प्रिंसीपल बने।


भारत में न्याय हेतु ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध लड़ते रहे

श्री एण्ड्रयूज़ अपने युनिवर्सिटी के दिनों में ही समूह मसीही लोगों की एकता के लिए कार्य करने लगे थे। वह चाहते थे कि लोग यदि एक ओर यीशु मसीह के सुसमाचार को दिल से मानें व मसीही सिद्धांतों पर चलें, तो दूसरी ओर वे न्याय के प्रति भी पूर्णतया प्रतिबद्ध रहें। इसी लिए वह भारत में भी न्याय के लिए ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध लड़ते रहे।

1904 में श्री एण्ड्रयूज़ दिल्ली स्थित कैम्ब्रिज मिशन में कार्य करने के लिए पहुंचे। वह सेंट स्टीफ़न’ज़ कॉलेज में फ़िलासफ़ी विषय पढ़ाने लगे। वहां वह बहुत से साथी भारतीय प्रोफ़ैसरों एवं विद्यार्थियों से मिले।

ब्रिटिश अधिकारियों के भारतीयों के प्रति नसलवादी एवं पक्षपातपूर्ण व्यवहार से निराश हुए एण्ड्रयूज़

CF Andrews श्री एण्ड्रयूज़ ने देखा कि कुछ ब्रिटिश अधिकारियों एवं नागरिकों का व्यवहार भारतीयों के प्रति नसलवादी एवं पक्षपातपूर्ण है; यह सब देखकर वह निराश हो गए। उन्होंने 1906 में ‘सिविल एण्ड मिलिट्री ग़ज़ट’ में एक पत्र लिखा तथा उन्होंने तब तक भारत में अंग्रेज़ प्रशासन के प्रति जो भी अनुभव किया था, वह सब लिखा। वह शीघ्र ही इण्डियन नैश्नल कांग्रेस की गतिविधियों में भाग लेने लगे क्योंकि कांग्रेस पार्टी का तब एकमात्र ध्येय भारत को स्वतंत्र करवाना ही हुआ करता था। वह भी श्री एण्ड्रयूज़ ही थे, जिन्होंने 1913 में मद्रास के कॉटन श्रमिकों की हड़ताल समाप्त करवाने में सहायता की थी।

पूर्णतया दलीलों से मनाते थे सामने वाले को

श्री एण्ड्रयूज़ एक बुद्धिजीवी, नैतिक सिद्धांतों को पूर्णतया मानने वाले तथा सामने वाले व्यक्ति को दलीलों से मना कर अपने पक्ष में कर लेने में पारंगत थे। इसी लिए गोपाल कृष्ण गोखले जी ने उन्हें कहा था कि वह दक्षिण अफ्ऱीका से गांधी जी को वापिस लाएं, ताकि गांधी जी के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार के साथ राजनीतिक विवादों के समाधान ढूंढने में कुछ मदद मिल सके। गोखले जी के अतिरिक्त श्री एण्ड्रयूज़ को इस बात के लिए प्रेरित करने में सेंट स्टीफ़न’ज़ कॉलेज के मसीही प्रिंसीपल सुशील कुमार रुद्र तथा कांग्रेस पार्टी के अन्य भी अनेक नेताओं ने भी भूमिका निभाई थी।

दक्षिण अफ्ऱीका में गांधी जी व एण्ड्रयूज़ के मध्य यीशु मसीह संबंधी भी हुई थी विचार-चर्चा

तब श्री एण्ड्रयूज़ दक्षिण अफ्ऱीका में जाकर युवा गुजराती वकील मोहनदास कर्मचन्द गांधी से मिले, जो उस समय वहां नटाल क्षेत्र में इण्डियन कांग्रेस को संगठित करने के प्रयत्न कर रहे थे तथा नसली पक्षपात तथा पुलिस द्वारा की जाने वाली मनमानियों के विरुद्ध वहां रहने वाले प्रवासी भारतीयों को एक झण्डे तले एकत्र कर रहे थे। श्री एण्ड्रयूज़ वहां पर गांधी जी से बातचीत के दौरान उस समय और भी अधिक प्रभावित हुए, जब गांधी जी ने यीशु मसीह के सिद्धांतों के बारे में अपने ज्ञान संबंधी जानकारी दी। नटाल में श्री एण्ड्रयूज़ ने गांधी जी को उनका आश्रम स्थापित करने तथा उनकी प्रसिद्ध पत्रिका ‘दि इण्डियन ओपिनियन’ को प्रकाशित करने में भी सहायता की थी।


राबिन्द्रनाथ टैगोर के साथ भी रहे थे सी.एफ़. एण्ड्रयूज़

1918 में विश्व युद्ध के लिए भारतीय सैनिकों की भर्ती करने का गांधी जी ने विरोध किया था क्योंकि उनका मानना था कि यह बात उनके अहिंसा के सिद्धांत के अनुरूप नहीं थी। परन्तु तब श्री सी.एफ़. एण्ड्रयूज़ उनके इस विरोध से सहमत नहीं थे। 1925 से लेकर 1927 तक वह ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन के अध्यक्ष भी चयनित हुए थे। वह प्रसिद्ध नोबल विजेता कवि एवं दार्शनिक राबिन्द्रनाथ टैगोर के साथ भी रहे थे।


एण्ड्रयूज़ ने किए हिन्दु व ईसाई समुदायों के बीच बातचीत के राह विकसित

CF Andrews श्री एण्ड्रयूज़ ने मसीही समुदाय तथा हिन्दु भाईयों-बहनों के साथ बातचीत के रास्ते विकसित किए थे। उन्होंने ‘किसी जाति से बहिष्कृत लोगों को अस्पृश्य’ मानने पर प्रतिबन्द्ध लगाने के अभियान का समर्थन किया था। 1925 में वह प्रसिद्ध वायकॉम सत्याग्रह में शामिल हुए तथा 1933 में वह दलित समुदाय की मांगों का सूत्रीकरण करने में डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के सहायक भी रहे थे।


गांधी जी को कहते थे ‘20वीं शताब्दी का सेंट फ्ऱांसिज़’

श्री एण्ड्रयूज़ एक बार राबिन्द्रनाथ टैगोर के साथ केरल के एक आध्यात्मिक शख़्सियत श्री नारायण गुरु से मिलने गए। उसके पश्चात् उन्होंने विश्व प्रसिद्ध फ्ऱैंच नाटककार, नावलकार, निबंधकार, कला इतिहासकार एवं रहस्यवादी रोमां रोलां (रोमन रोलैण्ड) को लिखे एक पत्र में यह लिखा - ‘‘मैंने अरब सागर पर हमारे यीशु मसीह को चलते हुए देखा है वह भी एक हिन्दु सन्यासी के वस्त्रों में।’’ वह गांधी जी को 20वीं शताब्दी का सेंट फ्ऱांसिज़ कहा करते थे। लन्दन में द्वितीय गोलमेज़ कान्फ्ऱेंस में गांधी जी के साथ भी श्री एण्ड्रयूज़ गए थे। गांधी जी ने अपने अनुभव के आधार पर ही कहा था,‘‘मैं नहीं समझता कि मेरा कभी किसी के साथ गहरा लगाव रहा हो। मैंने इस पृथ्वी पर किसी को भी अपना समीपवर्ती मित्र नहीं माना। पर एण्ड्रयूज़ के बारे में यह कहा जाता रहा है कि एण्ड्रयूज़ के जीवन में दोस्तियों की एक संपूर्ण सूची है; प्रत्येक चरण में एक नया मित्र है और उनका प्रत्येक मित्र उन्हें किसी सगे भाई से भी अधिक प्रिय है।’’ ऑक्सफ़ोर्ड (इंग्लैण्ड) के पादरी डॉ. मरकुस ब्रेबुक ने श्री एण्ड्रयूज़ के बारे में लिखते हुए बताया है कि मध्यकालीन मसीही भिक्षु ऐलर्ड ने पवित्र बाईबल के नए नियम में यूहन्ना की पहली पत्री के चौथे अध्याय की आठवीं आयत ‘‘गॉड इज़ लव’’ अर्थात ‘‘परमेश्वर प्रेम है’’ को अनुवाद करते हुए इसे लिखा था - ‘‘गॉड इज़ फ्ऱैण्डशिप’’ (परमेश्वर मित्रता है); श्री एण्ड्रयूज़ ऐसे ही थे।


भारतीय संस्कृति को सदा अपने गले से लगा कर रखा एण्ड्रयूज़ ने

श्री एण्ड्रयूज़ को भारतीय रहन-सहन बहुत पसन्द था। इसी लिए उन्हें सुशील कुमार रुद्र की मित्रता पसन्द थी क्योंकि वैसे तो श्री रुद्र पूरी तरह सच्चे मसीही थे परन्तु उन्हें भारतीय संस्कृति को सदा अपने गले से लगा कर रखा था। श्री एण्ड्रयूज़ को भी कुछ भारतीय मसीही लोगों का अंग्रेज़ी रहन-सहन नहीं भाता था। वह इस पारंपरिक मसीही कथन को भी नहीं मानते थे कि - ‘‘केवल मसीही लोग ही स्वर्ग में दाख़िल होंगे।’’ परन्तु उनकी प्रत्येक गतिविधि में यीशु मसीह के सिद्धांत ही झलका करते थे जैसे वह यीशु मसीह के इस सिद्धांत को बहुत मानते थे कि अपने दुश्मनों को प्रेम करो, जो चाहे आप से घृणा भी करें।


गांधी जी पर तीन पुस्तकं लिखीं एण्ड्रयूज़ ने

श्री एण्ड्रयूज़ ने गांधी जी पर तीन पुस्तकें लिखीं थीं। उन्होंने ही यह बात लोगों को बताई थी कि गांधी स्वयं कहा करते थे‘‘मैं उस स्थिति में हिन्दु नहीं रह सकता, यदि अस्पृश्यता इसका भाग रहेगी।’’

भारतीय धर्मों के प्रति बेहद सकारात्मक थे एण्ड्रयूज़

श्री एण्ड्रयूज़ के विचार भारतीय धर्मों के प्रति बेहद सकारात्मक थे। उन्होंने यह भी लिखा था- ‘‘हम सुनिश्चित तौर पर यह विश्वास कर सकते हैं कि अनन्त जीवन (एटर्नल लाईफ़) महात्मा बुद्ध एवं तुल्सी दास का प्रकाश था, जो यीशु मसीह में सबसे अधिक चमकदार ढंग से प्रजव्लित हुआ था।’’


फिजी देश में भारतीय श्रमिकों को स्वतंत्रता दिलवाई एण्ड्रयूज़ ने

1920 में फिजी देश में रहने वाले भारत के अनुबंधित (ऑन कॉन्ट्रैक्ट) श्रमिकों को श्री एण्ड्रयूज़ के प्रयत्नों के कारण ही स्वतंत्रता मिल पाई थी। 1935 में गांधी जी ने श्री एण्ड्रयूज़ को कह दिया था कि वह स्वतंत्रता संग्राम को भारतीयों तक ही सीमित रहने दें। इसी लिए 1935 के पश्चात् वह अधिकतर इंग्लैण्ड में रहने लगे थे। उनका निधन 5 अप्रैल, 1940 को हो गया था, जब वह कलकत्ता में थे। उनकी मृतक देह को कलकत्ता के लोयर सर्कुलर रोड स्थित मसीही कब्रिस्तान में दफ़नाया गया था।


प्रसिद्ध मसीही साधु सुन्दर सिंह से भी मिले थे एण्ड्रयूज़

श्री एण्ड्रयूज़ ने प्रसिद्ध मसीही साधु सुन्दर सिंह (1889-1929) से भी मुलाकात की थी। श्री एण्ड्रयूज़ का नाम आज भी बेहद सम्मानपूर्वक लिया जाता है। युनिवर्सिटी ऑफ़ कलकत्ता ने अपने दो अण्डर-ग्रैजुएट कॉलेजों - दीनबन्धु एण्ड्रयूज़ कॉलेज तथा दक्षिण कलकत्ता के सलीमपुर क्षेत्र के एक हाई स्कूल का नाम श्री एण्ड्रयूज़ के नाम पर ही रखा गया है। 1982 में रिचर्ड एटनबरो की फ़िल्म ‘गांधी’ में श्री एण्ड्रयूज़ की भूमिका ब्रिटिश अदाकार इयान चार्ल्ससन ने निभाई थी। अमेरिका के एपिस्कोपल चर्च द्वारा उनकी याद में 12 फ़रवरी को एक विशेष प्रीति भोज का आयोजन किया जाता है। 1971 में भारत सरकार ने उनकी याद में एक डाक-टिक्ट भी जारी किया था।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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