Tuesday, 25th December, 2018 -- A CHRISTIAN FORT PRESENTATION

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विदेशी मसीही प्रचारकों के सभी प्रश्नों के ऐसे उत्तर दिए थे गांधी जी ने



 




 


GROUPS इस समय विश्व की कुल जन-संख्या 763 करोड़ से भी अधिक है और उसमें से ईसाईयों (मसीही समुदाय) की जन-संख्या लगभग 240 करोड़ है। इस प्रकार संसार की लगभग एक-तिहाई आबादी मसीही है और इसी लिए क्रिस्चियनिटी को संसार का सब से बड़ा धर्म भी माना जाता है। मसीही समुदाय के तीन विशाल समूह - कैथोलिक चर्च, प्रोटैस्टैंट मसीही एवं पूर्वी ऑर्थोडॉक्स चर्च हैं। सब से अधिक 109 करोड़ मसीही लोग कैथोलिक चर्च से जुड़े हैं तथा दूसरे स्थान पर प्रोटैस्टैंट मसीही आते हैं। पीयू अनुसंधान केन्द्र के एक अनुमान के अनुसार यदि मसीही समुदाय में वर्तमान दर के अनुसार बढ़ोतरी जारी रहती है, तो वर्ष 2050 तक मसीही समुदाय की जनसंख्या संपूर्ण विश्व में 300 करोड़ हो जाएगी। परन्तु इसी केन्द्र के अनुसार 2070 तक मुसलमानों की जन-संख्या विश्व में सब से अधिक हो जाएगी।


यीशु मसीह का पहाड़ पर दिया उपदेश एक ऐसा फव्वारा, जिसका गहरा जल आपको अवश्य ही पीना चाहिएः गांधी जी

1927 में महात्मा गांधी जी एक बार जब सिलौन (श्रीलंका का पुराना नाम) गए थे, तो वहां पर विशाल संख्या में मौजूद मसीही व बोद्धी समुदायों के लोगों को संबोधन करते हुए उन्होंने कहा था,‘‘यीशु मसीह ने पहाड़ पर जो उपदेश दिया था (मत्ती 5 से 7 अध्याय) वह एक फव्वारे की तरह है, जिसका गहरा जल आपको अवश्य ही पीना चाहिए। परन्तु उसके साथ आपको दुःख झेलने के लिए भी तैयार होना होगा। पहाड़ पर दिया गया वह उपदेश हम सभी के लिए है। आप एक ही समय में परमेश्वर व शैतान दोनों के साथ नहीं रह सकते। परमेश्वर जो अत्यंत दयावान व सहनशील है, वह शैतान को चार दिन की चान्दनी में ख़ुश होने की आज्ञा तक दे देता है। मैं सिलौन के युवाओं को यह कहता हूँ कि वे शैतान के विनाशकारी प्रदर्शन से स्वयं को बचाएं।’’ (‘यंग इण्डिया’ - 8 दिसम्बर, 1927)

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यीशु की अहिंसा की शक्ति को भारत अपना चुकाः गांधी जी

एक बार एक विदेशी मसीही प्रचारक ने गांधी जी से एक विशेष भेट-वार्ता के दौरान पूछा कि ‘आप परमेश्वर के घर में जाने से इन्कार क्यों करते हैं, जब यीशु मसीह आपको बुला रहे हैं? भारत सलीब को अपने साथ लेकर क्यों नहीं चलता? तो गांधी जी ने उत्तर दिया था (जो गांधी जी के अपने दैनिक ‘यंग इण्डिया’ के 31 दिसम्बर, 1931 के अंक में प्रकाशित हुआ था)ः ‘‘यदि यीशु परमेश्वर को दर्शाते हैं, तो मैंने कभी परमेश्वर के घर में दाख़िल होने इन्कार नहीं किया, वास्तव में मैं इस में दाख़िल होना चाहता हूं। यदि यीशु किसी व्यक्ति के स्थान पर अहिंसा के सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करते हैं, तो भारत इस सुरक्षा प्रदान करने वाली शक्ति को अपना चुका है।’’


पौलूस रसूल की बातें यीशु के स्वयं के अनुभवों से अलगः यीशु मसीह

एक बार एक अन्य मसीही प्रचारक ने गांधी जी से प्रश्न किया - ‘‘क्या यीशु ने स्वय हमें नहीं सिखलाया?’’ तो गांधी जी का उत्तर थाः ‘‘हम यहां पर ख़तरनाक भूमि पर हैं। आपने मुझे यीशु मसीह के जीवन की अपनी व्याख्या करने के लिए कहा है। इस मामले में मैं यह कह सकता हूँ कि मैं बाईबल की इंजीलों में दर्ज हर बात को ऐतिहासिक सच्चाई नहीं मानता। हमें यह बात सदा स्मरण रखनी चाहिए कि यीशु मसीह अपने स्वयं के लोगों के बीच कार्यरत थे तथा उन्होंने कहा था कि ‘वह यहां पर कानून या पैग़म्बरों का सर्वनाश करने नहीं, अपितु परमेश्वर की मर्ज़ी पूरी करने के लिए आया हूँ (मत्ती 5ः17)।’ पहाड़ पर यीशु के उपदेश व पौलुस रसूल की पत्रियों के बीच मुझे काफ़ी अन्तर दिखाई देता है। पौलुस रसूल ने जो कुछ यीशु के बारे में देखा व उनकी शिक्षाओं से सीखा, उसी के बारे में उन्होंने महिमा की है परन्तु वह यीशु के स्वयं के अनुभवों से अलग हैं (अर्थात पौलुस रसूल की कही बातें अपनी स्वयं की हैं, वे यीशु मसीह ने स्वयं नहीं कहीं हैं)। (‘यंग इण्डिया’ - 19 जनवरी, 1928)’’


यीशु ने क्या कहा, उसे समझें, अपनी स्वयं की व्याख्या न करेंः गांधी जी

1935 में जब एक मसीही प्रतिनिधि-मण्डल गांधी जी को विशेष तौर पर मिलने के लिए गया, तो एक विदेशी मसीही प्रचारक ने उनसे पूछा ‘‘गांधी जी, आप धर्मांतरण (धर्म-परिवर्तन) पर आपत्ति क्यों जताते हैं? क्या यह काफ़ी नहीं है कि बाईबल ने हमें इस बात के लिए अधिकृत किया है कि हम सभी लोगों को जीवन जीने के बेहतर ढंग से अवगत करवाएं?’’ तो गांधी जी ने तत्काल उत्तर दियाः ‘‘ओह हाँ, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है जो लोग आपकी बात सुनें, उन सभी को चर्च के सदस्य बनाया जाना चाहिए। यदि आप अपनी बाईबल में दर्ज बातों की व्याख्या अपने हिसाब से करते हैं, तो आप मानवता के एक बड़े भाग की निंदा करते हैं परन्तु यह बात आपके मानने पर निर्भर करती है। सच्चा मसीही वह नहीं है, जो हर समय ‘परमेश्वर-परमेश्वर’ करता हुआ घूमता है परन्तु वह है, जैसे कि यीशु ने कहा था, जो परमेश्वर की मर्ज़ी को पूरा करता है। क्या ऐसा कोई व्यक्ति जिस ने यीशु मसीह का नाम नहीं सुना, वह परमेश्वर की इच्छा पूरी नहीं कर सकता? (गांधी जी का अपना स्वयं का साप्ताहिक ‘हरिजन’ - 11 मई, 1935)’’


अन्य धर्मों को असत्य न कहें मसीही लोगः गांधी जी

साप्ताहिक ‘हरिजन’ के 13 जनवरी, 1940 के अंक में प्रकाशित अनुसार एक विदेशी मसीही प्रचारक ने गांधी जी से प्रश्न किया कि ‘मैं यीशु मसीह के अपने स्वयं के अनुभव को अन्य लोगों के साथ साझा क्यों नहीं कर सकता, जबकि उससे मुझे अवर्णनीय शांति मिली है?’ तो उन्होंने जवाब दिया थाः ‘‘क्योंकि संभवतः आप ऐसा नहीं कह सकते कि जो बात आपके लिए सर्वश्रेष्ठ है, वह सभी के लिए वैसी ही श्रेष्ठ होगी। जैसे कुनीन (मलेरिया बुख़ार ठीक करने की औषधि) आपके मामले में जान बचाने का साधन हो सकती है परन्तु किसी अन्य के मामले में यही औषधि विष भी हो सकती है। क्या यह पुरानापन नहीं है कि आप यह मान लें आध्यात्मिकता एवं शांति की चाबी केवल आप ही के पास है और किसी अन्य धर्म का कोई व्यक्ति अपने धर्म-ग्रन्थ को पढ़ कर यही सभी चीज़ें प्राप्त नहीं कर सकता? मैंने श्रीमद् भगवदगीता से पढ़ कर जिस स्तर की मानसिक शांति एवं स्थिरता प्राप्त की है, उस बात से मेरे बहुत से मसीही मित्र ईर्ष्या करते हैं। आपकी समस्या इस बात में है कि आप अन्य सभी धर्मों को झूठा व अशुद्ध मानते हैं। आप अन्य धर्मों में विद्यमान सत्य को देखना ही नहीं चाहते क्योंकि इस मामले में आपने अपनी आँखें बन्द कर रखी हैं। मैंने सभी धर्मों को पढ़ा है और मैं उन सभी को उतना ही आदर देने योग्य हो पाया हूँ, जितना कि मैं अपने स्वयं के धर्म को दे पाया हूँ। इससे मेरा अपने स्वयं के धर्म के प्रति विश्वास और भी दृढ़ हुआ है तथा मेरा दृष्टिकोण विशाल हुआ है।’’


यीशु मसीह के सन्देश के योग्य बनें मसीहीः गांधी जी

‘हरिजन’ के 13 जनवरी, 1940 के ही अंक में वर्णित अनुसार एक मसीही डैलीगेट ने पूछा ‘‘मेरे जैसे मसीही और मेरे अन्य साथियों के लिए आपका क्या सन्देश है’’, तो गांधी जी ने उत्तर दियाः ‘‘उस सन्देश के योग्य बनें, जो यीशु मसीह ने पर्वत पर दिया था और देश के लिए चरखा कातने वाले ब्रिगेड में शामिल हों।’’

1940 में ही एक अन्य मसीही प्रतिनिध-मण्डल के साथ मुलाकात के दौरान एक मसीही प्रतिनिधि ने पूछा ‘‘क्या आप मुझे कुछ ऐसी बातें अथवा चीज़ें बता सकते है कि जो यीशु मसीह का सुसमाचार प्रस्तुत करते समय नहीं की जानी चाहिएं?’’ तो गांधी जी का उत्तर था - ‘‘यह सोचना छोड़ दें कि आप समस्त विश्व को मसीहियत में शामिल कर पाएंगे। बाईबल पढ़ने के पश्चात् मुझे कहीं पर भी ऐसा नहीं लगा कि यीशु मसीह ने मसीही समुदाय को कभी ऐसा कुछ करने को कहा था, जैसा कि अधिकतर मसीही आज-कल कर रहे हैं। जिस क्षण भी आप ऐसा व्यवहार अपना लेते और कहते हैं कि आप किसी अन्य व्यक्ति का धर्म-परिवर्तन करवाएंगें, तो आप अपनी क्षमता को सीमित कर लेते हैं। (‘हरिजन’ 23 मार्च, 1940)’’


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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