अंग्रेज़ मसीही प्रचारक सी.एफ़ ऐण्ड्रयूज़ बने भारतीय मसीही समुदाय के लिए आदर्श
गोरे मसीही प्रचारकों ने धर्म की आड़ लेकर किया था मसीही समुदाय को गुमराह
भारत के स्वतंत्र होने से पूर्व बहुत से अंग्रेज़ मसीही प्रचारक (तथा उन पर अंध-विश्वास कर के उनके पीछे लगने वाले कुछ मसीही भारतीय धार्मिक रहनुमा भी) अपनी-अपनी क्लीसिया (संगति या श्रद्धालुओं) को यही समझाते थे कि परमेश्वर व यीशु मसीह की इच्छा व मर्ज़ी से ही अंग्रेज़ों का राज्य भारत में स्थापित हो पाया था, ताकि वे लोग ब्रिटिश शासकों का विरोध न करें। कम पढ़े-लिखे मसीही श्रद्धालु उनकी ऐसी बातों के जाल में फंस कर तुरन्तआँखें बन्द कर के अपनी प्रार्थना में लीन हो जाते थे, क्योंकि यीशु मसीह व बाईबल पर विश्वास करने वाले अधिकतर लोग अपने सामने वाले लोगों को भी यीशु की तरह ही सच्चा व सुच्चा समझते थे और अब भी ज़्यादातर ऐसा ही है। गोरे मसीही प्रचारक ऐसे गुमराह करते रहे और मसीही समुदाय उन का शिकार होता रहा। गोरे प्रचारकों ने रोका बहुत से मसीही लोगों को स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लेने से ग्रैगर आर. कोलानूर, सी.बी. बर्थ तथा वी.सी. सैमुएल ने जैसे विद्वान इतिहासकार बहुत गहन अनुसंधान कार्य करके इसी नतीजे पर पहुंचे थे कि 1947 से पूर्व बहुत से अंग्रेज़ शासकों (सभी ने नहीं) ने धर्म का उपयोग करके बहुत से भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम के राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेने से बहुत समय तक रोक के रखा था। अत्याचारी अंग्रेज़ शासकों के डर से बहुत से पादरी भी अपनी क्लीसिया को बाईबल में से हवाले दे-दे कर यही समझाया करते थे कि हम सब को सदा राजा का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि वह परमेश्वर की मर्ज़ी से ही उस पद व सम्मान का हकदार हो पाया है। अधिकतर मसीही लोगों ने मानी सी.एफ़ ऐण्ड्रयूज़ जैसे अनेक अंग्रेज़ मसीही प्रचारकों की बात कुछ प्रमुख इतिहासकारों के अनुसार उस समय ब्रिटिश/इंग्लैण्ड से आए सी.एफ़ ऐण्ड्रयूज़ जैसे अनेक मसीही प्रचारक भी थे, जो इसी बात को अपनी क्लीसिया के समक्ष कुछ ऐसे कहा करते थे कि ‘यह भी परमेश्वर की ही मर्ज़ी है कि अब भारत में अपनी स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए राष्ट्रीय स्तर पर तेज़ी से जागरूकता आ रही है।’ उनका यह भी मानना था कि क्रूर अंग्रेज़ शासकों की मनमानियों व अत्याचारों के कारण ही भारतीय लोग अपने स्वयं के स्तर पर जागरूक होना प्रारंभ हुए। उनकी क्रूरताओं व दमन के कारण ही समूह भारत वासियों में राष्ट्रवाद की भावना कूट-कूट कर भरने लगी। श्री ऐण्ड्रयूज़ ने अपनी लिखित कृतियों व अपने संभाषणों से भारतीय मसीही समुदाय को ब्रिटिश शासन को भारत में से सदा के लिए समाप्त करने के लिए प्रेरित किया था। ऐसे ही राष्ट्रवादी पादरियों व प्रचारकों से प्रेरित हो कर मसीही स्वतंत्रता सेनानी (जिनका वर्णन हम पहले कर चुके हैं) राष्ट्रीय आन्दोलनों में कूद पड़े थे। आगरा में सी.एफ़ ऐण्ड्रयूज़ ने भारतीय युवाओं को किया था भारत के राष्ट्रीय हितों के लिए जूझने का आह्वान आगरा में एक बार ‘वर्ल्ड’ज़ क्रिस्चियन ऐण्डैवर’ कन्वैन्शन में श्री ऐण्ड्रयूज़ ने बहुत ज़ोर-शोर से भारतीय युवाओं को भारत के राष्ट्रीय हितों के लिए जूझने का आह्वान किया था। एच.सी. पेररूमलिल, ई.आर. हैमबाय एवं ग्रैगर आर. कोलानूर जैसे इतिहासकारों के अनुसार श्री ऐण्ड्रयूज़ ने अपने उस प्रसिद्ध भाषण में कहा था,‘‘यीशु मसीह को प्रेम करने के साथ-साथ अपने देश से भी प्रेम करो।’’ वैसे तो और भी बहुत से पश्चिमी मिश्नरी भारत में थे, परन्तु जितनी वीरता व दम से श्री ऐन्ड्रयूज़ अपनी बातों को भारतीय मसीही समुदाय के समक्ष रख पाते थे, वैसी बात अन्य गोरे प्रचारकों में नहीं थी। भारत का मसीही समुदाय ऐसे पथ-प्रदर्शकों की वजह से ही आज ‘धन्य’ कहलाने योग्य हो पाया है। व्यक्ति मसीही धर्म को अपना कर और भी अधिक देश-भक्त बन जाता है, यही दर्शाये सच्चा मसीहीः सी.एफ़ इण्ड्रयूज़ जब तक कांग्रेस पार्टी ने राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के अपने उद्देश्य को जग-ज़ाहिर नहीं किया था, तब तक तो अधिकतर मसीही मिशनरी इस के साथ रहे परन्तु ऐसी घोषणा किए जाने के पश्चात् उनमें से बहुत से पीछे हट गए। कांग्रेस के प्रति इन मिशनरियों का रवैया पूर्णतया परिवर्तित हो गया था और वे मसीही क्लीसियाओं व संगतियों को कांग्रेस से दूर रहने की सलाह भी देने लगे। परन्तु सी.एफ़ इण्ड्रयूज़ जैसे ब्रिटिश मसीही मिशनरी कभी पीछे नहीं हटे। उन्होंने भारतीय मसीही समुदाय को सदा स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े रहने की ही सलाह दिया करते थे। उन्होंने बार-बार लिखा व कहा,‘‘भारतीय मसीही समुदाय को कभी राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेने के महान सुअवसर गंवाने नहीं चाहिएं। वे अन्य जाति के अपने साथी भारत-वासियों को सदा यही दिखाएं कि यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता मान कर व मसीही धर्म ग्रहण कर के वे भारत में अलग-थलग नहीं पड़ गए हैं, अपितु उन्हें भारतवर्ष के समक्ष यह भी दर्शाना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति मसीही धर्म को अपना कर और भी अधिक देश-भक्त बन जाता है।’’ भारत की स्वतंत्रता हेतु डटे अनेक विदेशी मसीही मिशनरी ऐसे लोग तो आपको शायद इस धरती पर करोड़ों की संख्या में मिल जाएंगे कि जो जिस भी देश में जाते हैं, वहीं के हो जाते हैं परन्तु ऐसा जिगर बहुत कम लोगों के पास होता है कि वे लोग उस देश में जाकर उसको अपने ही लोगों से स्वतंत्र करवाने के लिए लड़ें व डटें। यह कार्य अभी तक तो सब से पहले केवल ऐसे मसीही मिशनरी ही कर सके हैं, जिन्होंने सचमुच यीशु मसीह के सिद्धांतों पर चल कर दिखाया है। गूगल व विकीपीडिया को कोटि-कोटि नमन भारत में ऐसे विदेशी मसीही मिशनरियों की संख्या सैंकड़ों में थी, जिन्होंने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से भारत को स्वतंत्र करवाने का समर्थन किया था। यह बात भी है कि कुछ मिशनरियों ने बेधड़क होकर किया तो कुछ ने कूटनीति से किया। परन्तु अफ़सोस की बात है कि ऐसे मसीही मिशनरियों के विवरण आज हमारे पास पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं हैं। उन्हें जानबूझ कर भारत के कुछ स्वार्थी किस्म के एवं पक्षपातपूर्ण इतिहासकारों व राजनीतिज्ञों ने भुला दिया। उनका कभी ज़िक्र ही नहीं किया जाता। आज कुछेक मुट्ठी भर सांप्रदायिक नेताओं ने देश में ऐसा माहौल बना दिया है कि कोई शब्द ‘मसीही मिशनरी’ कहने से भी कतराता है। हम अब ऐसे लोगों को शीशा दिखलाने एवं जन-साधारण को असलियत बताने के लिए कुछ ऐसे ही विदेशी मिशनरियों के विवरण आप को उपलब्ध करवा रहे हैं। शुक्र है कि आज हमारे पास इन्टरनैट सर्च इन्जिन ‘गूगल’ एवं ‘विकीपीडिया’ हैं, अन्यथा इतनी सी भी सच्चाई आज भारतीयों के समक्ष न आ पातीं - ऐसी आधुनिक टैक्नॉलोजी को कोटि-कोटि नमन। -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]