...तो इन कारणों से यीशु मसीह को नहीं अपना पाए थे गांधी जी
गांधी जी से प्रभावित हो कर मार्टिन लूथर किंग ने अमेरिका में छेड़ा था मसीही आन्दोलन
प्रसिद्ध अमेरिकन मैथोडिस्ट मसीही प्रचारक ई. स्टैनले जोन्स (1884-1973) महात्मा गांधी जी के बहुत घन्ष्ठि मित्रों में से एक थे। श्री स्टैनले ने अपना बहुत सारा समय गांधी एवं नेहरू परिवार के साथ बिताया था। गांधी जी की हत्या के पश्चात् श्री जोन्स ने गांधी जी की जीवनी लिखी थी। यही वह पुस्तक थी, जिसे पढ़ कर अमेरिकन बैप्टिस्ट पादरी व सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर (15 जनवरी, 1929-4 अप्रैल, 1968) ने प्रेरणा हासिल की थी और अमेरिका में मसीही सिद्धांतों के आधार पर शहरी मानवीय अधिकारों की प्राप्ति के लिए बड़े स्तर पर अहिंसक ढंग से आन्दोलन छेड़ा था और गांधी जी की तरह ही शहरी असहयोग आन्दोलन भी चलाया था। श्री जोन्स द्वारा रचित गांधी जी की जीवनी पढ़ कर प्रेरणा हासिल करने की बात स्वयं डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर की सुपुत्री यूनिस जोन्स मैथ्यूज़ ने बताई थी। श्री जोन्स ने ही भारत में कम्युनिस्टों (जो परमेश्वर में विश्वास नहीं करते) को अधिक प्रसारित न होने देने के भी अथक प्रयास किए थे।
स्टैनले जोन्स ने पूछा था गांधी जी से बुनियादी प्रश्न
वह श्री स्टैनले जोन्स ही थे, जिन्होंने एक बार गांधी जी से पूछा था कि आप यीशु मसीह के वचनों को दिन में इतनी बार दोहराते हैं, परन्तु आप उनके अनुयायी (मसीही) बनने की बात को क्यों संख़्ती से रद्द कर देते हैं, तो गांधी जी का उत्तर था (जो अब एक प्रसिद्ध कथन बन चुका है) - ‘‘ओह, मैं यीशु मसीह को रद्द नहीं करता। मैं आपके यीशु को प्यार करता हूँ। परन्तु आपके बहुत से मसीही लोग यीशु मसीह की शिक्षाओं के अनुसार नहीं चलते।’’
यह चित्र बाईबल के पुराने नियम की इस समय उपलब्ध सब से पुरानी हस्तलिखित पांडुलिपि का है, जिसे यीशु मसीह से 250 वर्ष पूर्व व 68 ईसवी सन् के मध्य लिखा गया। इस पांडुलिपि (मनुस्क्रिप्ट) को 5 दिसम्बर, 2007 से लेकर 4 जून, 2008 तक दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल स्थित योंगसान नैश्नल मैमोरियल अजायबघर में प्रदर्शित किया गया था। यह पांडुलिपि मृत सागर (डैड सीअ) से प्राप्त हुई थी।
दक्षिण अफ्ऱीका में घटित घटना भी बनी बाधक गांधी जी के मसीही बनने में
इस प्रकार हम देखते हैं कि गांधी जी पर यीशु का कितना प्रभाव बना रहा और वह सदा उन्हीं की शिक्षाओं के अनुसार कार्यरत रहते थे। मसीही धर्म ग्रहण न करने का कारण उनके साथ दक्षिण अफ्ऱीका में घटित हुई एक घटना भी थी। वह बाईबल व यीशु मसीह के जीवन संबंधी बहुत कुछ पढ़ व जान चुके थे। वह यीशु मसीह को सदा के लिए भी ग्रहण करना चाहते थे। इसी लिए उन्होंने एक चर्च में जाने का निर्णय लिया। जब वह चर्च के द्वार पर पहुंचे, तो उस चर्च के बज़ुर्ग ने उनसे कहा,‘‘ए काफ़िर, तू इधर कहां जा रहा रहा है? इस चर्च में काफ़िरों के लिए कोई जगह नहीं है। यहां से दफ़ा हो जाओ अन्यथा मैं अपने सहायकों से कह कर तुम्हें सीढ़ियों से नीचे फिंकवा दूंगा।’’ गांधी जी ने तो तब तक केवल लोगों के प्रति यीशु मसीह के असीम प्यार संबंधी ही जाना था परन्तु उन्हें यह बात मालूम नहीं थी कि यीशु मसीह को सच्चे दिल से चाहने वाला कोई मसीही ऐसा व्यक्ति भी हो सकता है। इसी लिए उन्होंने कई बार ईसाईयत/मसीहियत पर ऐसी गहन टिप्पणियां कीं कि उनका प्रतिउत्तर किसी को भी नहीं सूझा।
गांधी जी के अनुसार ऐसे हो पाएगी परमेश्वर की प्राप्ति
गांधी जी का मानना था कि सचमुच केवल दिन में बीस-तीस बार परमेश्वर तथा यीशु मसीह का नाम लेकर या लोगों में उनका प्रचार करने या लोगों में मसीही सुसमाचार के पर्चे बांट देने मात्र से ही परमेश्वर की प्राप्ति नहीं हो पाएगी या परमेश्वर के राज्य में ऐसे स्थान नहीं मिल पाएगा। हम मसीही लोगों को तो सचमुच यीशु मसीह की तरह ही सदा सत्य व अहिंसा के पथ पर चल कर दिखाना होगा, दुःख उठाने होंगे तथा आम लोगों के साथ खड़े रहना होगा - जैसे यीशु किया करते थे।
पश्चिमी देशों में यदि मसीहियत होती, तो दो विश्व-युद्ध न होतेः गांधी जी
गांधी जी का कहना था कि पश्चिमी देशों में सच्ची मसीहियत नहीं है, यदि होती तो दो विश्व युद्ध न होते क्योंकि वे पूर्णतया उन्हीं देशों के मध्य लड़े गए थे, जो यीशु मसीह के अनुयायी होने का दावा करते हैं। इसी लिए गांधी जी ने कहा था,‘‘मैं अपने मसीही भाईयों को यही सलाह देता हूं कि वह वैसी मसीहियत को न अपनाएं, जैसी पश्चिमी देशों में सिखलाई जाती है। हम जानते हैं कि वे एक-दूसरे से कैसे लड़ते रहते हैं। यीशु मसीह तो एशियन थे और वैसा चोगा पहनते थे, जैसा मध्य-पूर्व के देशों में पहरावा है। वह धैर्य व विनम्रता की एक साक्षात् प्रतिमूर्ति (आईकॉन) थे। मुझे आशा है कि भारत के मसीही बिल्कुल वैसे ही अपना जीवन व्यतीत करेंगे, जैसे कि यीशु ने सचमुच बिताया था और जो बातें बाईबल में दर्ज हैं और वैसे नहीं, जैसे कि पश्चिमी देशों के अधिकतर ख़ून से सने हाथों वाले लोग बिताते हैं। मैं पश्चिमी देशों की आलोचना नहीं करना चाहता। मुझे उन देशों के अच्छे नैतिक मूल्यों व बहुत सी अच्छाईयों की भी जानकारी है। परन्तु मैं यह कहना चाहता हूं कि एशिया के यीशु का पश्चिम के अधिकतर लोग सही ढंग से प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे है।’’
लन्दन के चर्च में गांधी जी को दी गई थी भावभीनी श्रद्धांजलि
17 फ़रवरी, 1948 को लन्दन के वैस्टमिनस्टर ऐबे के चर्च में गांधी जी को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई थी। तब वहां पर सभी मसीही मिशनों व अन्य धर्मों के लोग गांधी जो को स्मरण करने के लिए एकत्र हुए थे क्योंकि सभी को 17 दिन पूर्व हुई गांधी जी की हत्या पर बहुत अफ़सोस हुआ था। अनेक ब्रिटिश पादरी साहिबान व अन्य नेताओं ने तब गांधी जी को दिल से याद किया था।
डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने गांधी जी के बारे में एक बार कहा थाः ‘‘यह एक व्यंग्योक्ति ही है कि आधुनिक विश्व का सच्चा व महान्तम मसीही एक ऐसा व्यक्ति था जिस ने कभी मसीही धर्म नहीं अपनाया।’’
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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