गांधी जी यीशु मसीह को मानते थे ‘संपूर्ण मानव’ व पवित्र बाईबल को ‘आत्मा की पुस्तक’
गांधी जी करते थे पवित्र बाईबल के वचनों की ऐसी व्याख्या कि मसीही समुदाय अत्यंत प्रसन्न हो जाता था
मसीही धार्मिक व सामाजिक कार्यकर्ता सैमुएल हौपगुड (1865-1958) ने ऐना बोनस किंग्सफ़ोर्ड तथा एडवर्ड मेटलैण्ड द्वारा लिखित पुस्तक ‘परफ़ैक्ट वे - दि फ़ाईण्डिंग ऑफ़ दि क्राईस्ट’ (‘परिपूर्ण पथ - यीशु मसीह की खोज’) के चतुर्थ संस्करण की भूमिका में लिखा था कि महात्मा गांधी बाईबल को ‘बुक ऑफ़ सोल’ (आत्मा की पुस्तक) मानते थे। गांधी जी ने बाईबल के बारे में अपनी समझ को नॉनकन्फ़र्मिस्ट प्रोटैस्टैंट-वैज़लियन्ज़, प्रैसबाईटिरियन्ज़, बैप्टिस्ट्स, क्वेकर्स एवं कॉन्ग्रीगेशन्लिस्ट्स मसीही प्रचारकों के साथ विचार-विमर्श करके विकसित किया था। वे सभी प्रचारक गांधी जी की इस बात से पूर्णतया सहमत थे कि यीशु मसीह ने सलीब पर चुपचाप रह कर अत्याचार सहते हुए नहीं (तब तक यूरोप के मसीही पादरी यही मानते थे) अपितु अत्याचारियों का पूर्णतया सचेत होकर, दृढ़तापूर्वक मुकाबला करते व अपनी बातों पर अडिग रहते हुए जन-साधारण के साथ प्रेम होने के कारण अपनी जान दी थी। गांधी जी की ऐसी व्याख्या से ये सभी मसीही प्रचारक अत्यंत प्रभावित व प्रसन्न थे।
2001 के एक सर्वेक्षण के अनुसार विश्व में 33,830 विभिन्न मसीही समुदाय या मिशनें थीं। दुनिया के 27 देशों में मसीही धर्म का कट्टर विरोध होता है परन्तु फिर भी यह धर्म दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की करता हुआ आगे बढ़ रहा है। मुसलमानों में यह बात प्रचलित है कि यीशु मसीह एक बार फिर इस धरती पर आएंगे और मसीही-विरोधी लोगों का ख़ात्मा करेंगे और 40 वर्षों तक शासन करेंगे। इसी लिए मदीना (सऊदी अरब) में स्थित इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मोहम्मद की कब्र के साथ एक स्थान रखा गया है, जो यीशु मसीह के लिए आरक्षित माना जाता है।
गांधी जी ने पवित्र बाईबल का किया था गहन-गंभीर अध्ययन
गांधी जी के सामाजिक सुधारों पर इन प्रोटैस्टैन्ट पादरी साहिबान व आम लोगों के प्रभाव का विवरण जेम्स हन्ट ने अपनी पुस्तक ‘गांधी एण्ड दि नॉन-कन्फ़र्मिस्ट’ में दिया है। इन्हीं पादरी साहिबान ने गांधी जी को मसीही धर्म-ग्रन्थों के अनुशासित अध्ययन संबंधी बताया था। उन्होंने बाईबल का अध्ययन जोसेफ़ पार्कर द्वारा रचित ‘दि पीपल’ज़ बाईबलः डिसकोर्सेज़ अपौन दि होली स्क्रिप्चर्स’ (1889) से किया था। पार्कर की यह कृति सचमुच इस धरती के मसीही संसार के लिए आज भी बहुत बड़ा योगदान है। यह बाईबल 25 मोटी-मोटी पुस्तकों (जिल्दों अर्थात संस्करणों) के रूप में प्रकाशित हुई थी, जिसमें प्रत्येक आयत की पूर्णतया विस्तारपूर्वक व्याख्या दी गई है। यह पुस्तक पढ़ कर मसीही धर्म के बारे में किसी को भी सहज रूप से एक बड़ी समझ विकसित हो सकती है।
‘दानिय्येल’ (डैनियल) की पुस्तक व कुरिन्थियों की पहली पत्री का 13वां अध्याय बहुत प्रिय थे गांधी जी को
लियो टॉल्सटॉय की पुस्तकें पढ़ कर भी गांधी जी को ईसाई धर्म संबंधी काफ़ी ज्ञान प्राप्त हुआ था। गांधी जी को बाईबल में ‘दानिय्येल’ (डैनियल) की पुस्तक बहुत प्रिय थी। परन्तु पौलूस रसूल के महिलाओं संबंधी विचारों को वह ठीक नहीं समझते थे। बाईबल के नए नियम में दर्ज कुरिन्थियों की पहली पत्री का 13वां अध्याय भी उन्हें बहुत अच्छा लगता था। 1893 में दक्षिण अफ्ऱीका आने के तुरन्त पश्चात् उन्होंने स्कॉटलैण्ड के अत्यंत दूरदर्शी धार्मिक लेखक व भू-विज्ञानी हैनरी ड्रम्मौण्ड (1851-1897) द्वारा लिखित एक लेख ‘दि ग्रेटैस्ट थिंग इन दि वर्ल्ड’ (विश्व की महान् चीज़) को पढ़ा था और उससे बहुत अधिक प्रभावित हुए थे। यह लेख पूर्णतया कुरिन्थियों की पहली पत्री के 13वें अध्याय पर ही आधारित था। गांधी जी ने इस लेख को भी अत्यंत पवित्र माना था। वही लेख जब डैनिश (जर्मनी के) मिशनरी ऐस्तर फेयरिंग ने उन्हें 24 वर्षों बाद 1917 में पुनः भेट किया था, तो उन्होंने उसे पुनः पढ़ा था और अत्यधिक सराहना की थी। हैनरी ड्रम्मौण्ड का यह लेख एक ऐसे व्यक्ति की उदाहरण देते हुए समाप्त होता है, जिसने कुरिन्थियों की पहली पत्री का 13वां अध्याय प्रत्येक सप्ताह तीन माह तक पढ़ा था और उसका जीवन पूर्णतया व सदा के लिए परिवर्तित हो गया था।
पवित्र बाईबल की बहुत सी आयतें ज़ुबानी याद थीं गांधी जी को
अतः यह स्पष्ट है कि गांधी जी ने बाईबल को केवल पढ़ा ही नहीं, बल्कि उसका गहन अध्ययन भी किया। उन्हें पवित्र बाईबल की बहुत सी आयतें ज़ुबानी याद भी थीं। वह सार्वजनिक व निजी विचार-विमर्शों के दौरान प्रायः उन आयतों को दोहराया भी करते थे। भारत के बहुत से मसीही विश्वासियों ने उन्हें बाईबल के ‘नए नियम’ पर अपनी टिप्पणी लिखने का आग्रह किया था परन्तु वह हर बार इन्कार कर दिया करते थे। परन्तु फिर भी वह सदा बाईबल को और अधिक जानने के इच्छुक बने रहे। उन्होंने अपने जीवन में गांधी जी की अनेक शिक्षाओं का सदा अनुपालन किया।
पवित्र बाईबल के नए नियम से गांधी जी ने सीखा था बहुत कुछ
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) स्थित सेंट एण्ड्रयू’ज़ कॉलेज के अंग्रेज़ी विभाग के डॉ. शीबा हिमानी शर्मा ने अपने एक निबंध ‘इनफ़्लुएंस ऑफ़ दि बाईबल ऑन गांधी’ज़ एथिक्स’ (गांधी जी की नैतिकताओं पर बाईबल का प्रभाव) में लिखा है कि इंग्लैण्ड में जब गांधी जी अभी पढ़ रहे थे, तो उनके एक मित्र ने उन्हें बाईबल पढ़ने के लिए दी थी। तब उन्हें पुराने नियम की बहुत सी बातें समझ नहीं आई थीं। नए नियम से उन्हें बहुत कुछ मिला। गांधी जी ने अपने एक प्रशंसक की पत्नी मिली पोलक को बताया था ‘‘एक बार तो मैं मसीही धर्म को अपनाने संबंधी बहुत गंभीर हो गया था... यीशु मसीह का वह सुशील व्यवहार, इतने धैर्यवान, द्यालू, सभी को प्रेम करने वाले, सभी को क्षमा कर देने वाले, जिन्होंने अपने अनुयायियों को सदा यही सिखलाया कि कभी प्रतिक्रिया में कुछ नहीं करें, कोई आपके एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा भी उसके आगे कर दें, मैं समझता हूँ कि यह एक संपूर्ण मानव की सुन्दर उदाहरण है...।’’
गांधी जी ने माना था कि अहिंसा का भाव उनमें यीशु को देख कर उत्पन्न हुआ
गांधी जी यीशु मसीह को ‘मानवता के महान शिक्षक’ मानते थे। उनका कहना थाः ‘‘यीशु मसीह ने जो दुःख सहे, उनसे मुझ में अहिंसा का ऐसा विश्वास उत्पन्न हुआ है, जो कभी मर नहीं सकता मेरे सभी दुनियावी कार्यों में इसे देखते रहेंगे।’’ साबरमती आश्रम में गांधी जी की झोंपड़ी के भीतर यीशु मसीह का चित्र सदा लगा रहता था, जिस पर लिखा हुआ था ‘ही इज़ अवर पीस’ (वह हमारी शांति है)। केवल एक कपड़े में सलीब पर टंगे हुए यीशु मसीह के उस चित्र ने गांधी जी के दिल को बहुत गहराईयों से छूह लिया था, क्योंकि भारत के बहुत से गांवों में अधिकतर आम ग़रीब लोग ऐसे ही रहते थे (हैं)।
गांधी जी का मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति में अच्छाई व दया का एक आवेग होता है और वहीं से एक दिन आध्यात्मिकता की चिंगारी फूटती है और यही बात संपूर्ण मानवता हेतु आशा की किरण भी है। उनका मानना था कि यह सभी बातें यीशु के जीवन में आप सहज रूप से ढूँढ सकते हैं। उनका कहना था कि ‘यीशु मसीह केवल मसीही धर्म के ही नहीं, अपितु समस्त विश्व के है, सभी जातियों व लोगों के हैं; वे चाहे किसी भी झण्डे, नाम या सिद्धांत तले कार्यरत हों।’
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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