पश्चिमी देशों को खुल कर ‘मसीही सिद्धांतों के विरोधी’ कहा गांधी जी ने
यह चित्र विश्व का सब से पहले गिर्जाघर - एचमिएडज़िन कैथेड्रल का है, जिसका निर्माण 301 ई. सन् से लेकर 303 ई. सन् के मध्य सन्त ग्रैगरी द्वारा करवाया गया था, तब वहां पर सम्राट टिरिडेट्स-तृतीय का राज्य था। यह चर्च आरमीनिया नामक देश के नगर वग़रशपत में स्थित है। आरमीनिया को भूगोलिक तौर पर जांचें तो यह देश यूरोप व एशिया के मध्य स्थित है। पहले यह रूस का भाग हुआ करता था परन्तु 1991 में जब सोवियत रूस का विभाजन हुआ तो आरमीनिया एक स्वतंत्र गणराज्य बन गया था। आरमीनिया ही दुनिया का वह पहला देश है, जिसने 301 ई. सन् में सरकारी अर्थात अधिकृत तौर पर मसीही धर्म को अपनाया था। उससे पहले किसी देश ने राजकीय तौर पर यीशु मसीह को ग्रहण नहीं किया था।
शैतान अपने होठों पर परमेश्वर का नाम लेकर सफ़ल हो रहा हैः गांधी जी
महात्मा गांधी जी ने अपने द्वारा स्वयं चलाए जाने वाले अंग्रेजी अख़बार ‘यंग इण्डिया’ के 8 सितम्बर, 1920 के अंक में लिखा थाः ‘‘आज का यूरोप किसी भी तरह परमेश्वर या मसीहियत की भावना को नहीं, बल्कि शैतान की भावना का प्रतिनिधत्व कर रहा है। और उस परिस्थिति में शैतान की सफ़लताएं और भी अधिक बढ़ जाती हैं, जब वह अपने होठों पर परमेश्वर का नाम लेकर प्रकट होता है। आज का यूरोप किसी भी तरह से सच्चा मसीही नहीं है, क्योंकि उसे तो केवल धन-दौलत से ही प्यार है और उसी की आराधना करता है। जबकि बाईबल में तो बहुत स्पष्ट लिखा है कि ‘एक ऊठ का सूई के नक्के में से निकल जाना आसान है, परन्तु एक अमीर आदमी का परमेश्वर के राज्य में जाना कठिन है (मत्ती 19ः24)।’ यह बात स्वयं यीशु मसीह ने कही थी परन्तु उनके तथाकथित अनुयायी तो अपनी नैतिक प्रगति को भौतिक अर्थात अपनी धन-दौलत से ही नाप रहे हैं।’’
इंग्लैण्ड का तो राष्ट्रीय गीत भी सच्ची मसीहियत के विरुद्धः गांधी जी
गांधी जी ने उसी 8 सितम्बर, 1920 के अंक में आगे लिखा कि- ‘‘इंग्लैण्ड का अपना राष्ट्रीय गीत भी सच्ची मसीहियत के विरुद्ध है। यीशु मसीह ने तो अपने अनुयायियों से यह भी कहा था कि अपने दुश्मनों से भी अपनों की तरह प्यार करो परन्तु इंग्लैण्ड के राष्ट्रीय गीत में कहा गया है कि ‘ ‘‘कनफ़ाऊण्ड हिज़ ऐनिमीज़, फ्ऱस्ट्रेट देयर नैविश ट्रिक्स’’ (अपने देश के दुश्मनों का नाश कर दो, उनकी धूर्त चालों को धाराशायी कर दो)। यीशु के सच्चे श्रद्धालू ऐसा कैसे कह व कर सकते हैं? पिछला विश्व युद्ध (जो 1914 से 1918 तक चला था) ने केवल शैतानी स्वभाव को ही दर्शाया और यूरोप में ऐसी ही सभ्यता का प्रभाव है। सार्वजनिक नैतिकता के प्रत्येक गोले को विजेताओं ने अच्छाई के नाम पर तोड़ कर रख दिया है। किसी भी प्रकार के झूठ को शान से बोला जा रहा है। प्रत्येक अपराध के पीछे कोई धार्मिक अथवा आध्यात्मिक (रुहानियत) की भावना बिल्कुल भी नहीं है, बल्कि केवल और केवल धन-दौलत लूटने का उद्देश्य मात्र है। ...यह निश्चित तौर पर आवश्यक है कि धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार ही चला जाए, परन्तु उसके साथ ऐसे लोगों के नैतिकता के दावों के खोखलेपन को सामने लाना भी उतना ही आवश्यक है, जो किसी नैतिक लाभ के स्थान पर केवल धन-दौलत की तरक्की को प्राथमिकता देते हैं। किसी अज्ञानी कट्टर व्यक्ति को किसी ऐसे बुरे व्यक्ति के मुकाबले में समझाना आसान है, जो जान-बूझ कर बुराईयां करता है। मैं ये बातें किन्हीं विशेष व्यक्तियों या देशों के विरुद्ध नहीं कह रहा। यूरोप में भी लाखों लोग ऐसे हैं, जो धन-दौलत से अधिक अपनी धार्मिक भावनाओं को अधिक प्राथमिकता देते हैं। मैंने केवल यूरोप के उस रुझान को ही प्रकट किया है, जो कुछ इस समय के नेताओं द्वारा प्रतिबिंबित हो रहा है ...यह बुरी ताकतों का सुमेल है जिससे भारत इस समय अहिंसक असहयोग द्वारा लड़ रहा है।’’ गांधी जी ने जब यह लिखा था, तब उनके द्वारा देश में असहयोग आन्दोलन (नॉन-कोआप्रेशन मूवमैन्ट) प्रारंभ किया जा चुका था।
आज-कल के ईसाईयों ने यीशु मसीह के सच्चे सन्देश को तोड़-मरोड़ कर रख दियाः गांधी जी
इसी प्रकार ‘यंग इण्डिया’ के 22 सितम्बर, 1921 के अंक में गांधी जी ने लिखा था- ‘‘मेरा मानना है कि पश्चिमी देशों की मसीहियत व्यावाहारिक तौर पर केवल यीशु मसीह की बातों से पूर्णतया इन्कार करने लिए ही कार्यरत है। मैं नहीं मानता कि यदि यीशु मसीह कहीं आज सचमुच हमारे बीच आ जाएं, तो वह इन आधुनिक मसीही संगठनों, संस्थानों, सार्वजनिक प्रार्थना सभाओं में अपनाए जाने वाले ढंग या आधुनिक पादरी साहिबान को कभी स्वीकार कर पाएंगे।’’
फिर अपने साप्ताहिक अख़बार ‘हरिजन’ के 30 मई, 1936 के अंक में भी उन्होंने कुछ ऐसी ही भावनाएं प्रकट करते हुए लिखा थाः ‘‘आज मैं कट्टर मसीहियत के विरुद्ध बग़ावत करता हू, क्योंकि मुझे पक्का विश्वास है कि उसने यीशु मसीह के सच्चे सन्देश को तोड़-मरोड़ रख दिया है। यीशु मसीह एक एशियाई थे, जिनका सन्देश विभिन्न संसाधनों द्वारा दुनिया भर में फैला और फिर एक रोमन शासक (रोम का वह शासक कौनस्टैंटाईन-प्रथम था, जिस ने 306 से लेकर 337 ई. सन् तक राज्य किया था) ने इस सन्देश को अपना लिया तथा उसके बाद यह एक साम्राज्यवादी धर्म हो गया और आज तक वैसे ही चलता आ रहा है।’’
भारतीय मसीहियत देश के सभी धर्मों के लोगों को आपस में जोड़ने हेतु प्रतिबद्ध
ऐसा नहीं है कि गांधी जी ने सदा यीशु मसीह एवं मसीही धर्म के पक्ष में ही लिखा है। परन्तु हम यहां पर उनके द्वारा यीशु मसीह संबंधी केवल सकारात्मक टिप्पणियां ही दे रहे हैं उनकी कुछ नकारात्मक बातें (हमें इस बात की जानकारी है कि वे नैगेटिव बातें असल में उन्होंने अपने समकालीन अत्याचारी अंग्रेज़ शासकों के संदर्भ में ही कही हो सकती हैं और हम यह भी जानते हैं कि यीशु मसीह व मसीही धर्म के बारे में अन्य किसी भी बड़े समकालीन व तत्कालीन नेता कभी इतनी सकारात्मक बातें नहीं कहीं, जितनी गांधी जी ने कही हैं - इसी लिए हम उन पॉज़िटिव बातों को ही ले रहे हैं) जानबूझ कर नहीं दे रहे, क्योंकि हम अन्य लोगों की तरह अपने स्वयं के देश में फूट डालने की नहीं, अपितु परस्पर सद्भावना उत्पन्न करने व सांप्रदायिक एकता को बढ़ावा देने के इच्छुक हैं। उदाहरणतया, गांधी जी ने यीशु मसीह को कभी ‘परमेश्वर का पुत्र’ नहीं माना, जैसे कि संपूर्ण विश्व के मसीही समुदाय का एकजुट विश्वास है। इसी तरह जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा था कि आप पर यीशु मसीह का इतना गहन प्रभाव है, तो आप ने मसीही धर्म क्यों ग्रहण नहीं किया, तो उन्होंने कई ऐसी बातें कही थीं कि जिससे अधिकतर मसीही भाईयों-बहनों की धार्मिक भावना को ‘कुछ हद तक’ ठेस पहुंच सकती है परन्तु किसी धर्म या उस धर्म के अगुवा को मानना या न मानना प्रत्येक व्यक्ति की अपनी निजी व व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर करता है। आज यदि धर्म का इस्तेमाल हो, तो समाज में एकता की माला को और भी सशक्त बनाने हेतु होना चाहिए न कि फूट डालने के लिए - जैसे कि आज कल के कुछ तथाकथित राज-नेताओं ने अपनी दिनचर्या का भाग ही बना लिया है।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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