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Jesus Cross

गांधी जी ने यीशु मसीह की वह बातें स्पष्ट कीं, जो पश्चिमी चिंतक भी न जान पाए



 




 


1931 में गांधी जी पहुंचे वैटिकन सिटी, यीशु के सलीबी दुःख को महसूस किया

दिसम्बर 1931 में लन्दन में हुई गोल-मेज़ कान्फ्ऱेंस में भाग लेने के बाद महात्मा गांधी जी वैटिकन सिटी (रोमन कैथोलिक मसीही समुदाय का मुख्यालय एवं पोप का निवास-स्थान) में रुके थे। तब उनका प्रतिक्रम तत्काल एवं भावुक था। वह लिखते हैंः ‘‘लन्दन से वापसी पर वैटिकन सिटी में रुका। मैं इटली के निरंकुश शासक मस्सोलिनी के उस महान् एवं प्राचीन नगर को देख पाया। मैंने वहां पर सलीब पर यीशु मसीह को लटकाए जाने का एक बहुत विशाल चित्र देखा। मेरा सर उस चित्र के आगे झुक गया। मैं उस सजीव दुखांत के उस दृश्य से दूर न जा पाया। मैंने महसूस किया केवल इस एक सलीबी दुःख को देख कर पश्चिम के कितने सारे राष्ट्रों ने यीशु मसीह को सदा के लिए अपना लिया था। दूसरों को दुःखी देख कर कभी ख़ुशी नहीं होती परन्तु जब कोई स्वयं को अन्य लोगों के लिए दुःख दे, तो उससे अवश्य प्रसन्नता मिलती है..’’ जैसे कि यीशु मसीह ने किया था कि हमारे पापों को अपने ऊपर ले कर हमारे लिए सलीब पर अपनी जान दे दी।

यीशु ने दृढ़तापूर्वक रोम के शासकों का मुकाबला कियाः गांधी जी

गांधी जी सलीब पर यीशु मसीह के जान देने को ऐसा नहीं मानते कि उन्होंने रोम के शासकों के विरुद्ध चुप रह कर अपना विरोध प्रकट करते हुए सलीब पर अपनी जान दी थी। उनका कहना था कि ऐसा उन्होंने आम लोगों से प्यार के कारण दृढ़तापूर्वक किया था। इसी लिए उन्होंने 1946 में स्विटज़रलैण्ड की मैडम एडमण्ड प्राईवेट को लिखे एक पत्र में कहा थाः ‘‘यूरोप अब तक यीशु मसीह के सलीबी दुःख को एक ‘निष्क्रिय विरोध’ (पैसिव रिज़िस्टैंस) ही मानता रहा है, जैसे कि कोई कमज़ोर व्यक्ति विवश हो कर शासकों को कुछ नहीं कह पाया हो। पर मैंने नये नियम को पढ़ा है और मुझे चारों मुख्य इंजीलों में यीशु मसीह की कहीं कोई कमज़ोरी दिखाई नहीं दी, उन्होंने जो कुछ भी किया वह सब दृढ़तापूर्वक जन-साधारण से प्रेम के कारण था।’’

पहाड़ पर यीशु मसीह के सुसमाचार, यीशु मसीह के संपूर्ण जीवन तथा यीशु मसीह की सलीब से गांधी जी अत्यंत प्रभावित था इस बात का प्रभाव गांधी जी के प्रारंभिक जीवन से लेकर उनके अंत तक देखा जा सकता है।


टॉलस्टॉय की कृतियों से यीशु मसीह संबंधी गांधी जी के विचार हुए स्पष्ट

Leo Tolstoy Book Title यह चित्र लियो टॉलस्टॉय (1828-1910) की पुस्तक ‘दि किंगडम ऑफ़ गॉड इज़ विदइन यू’ (परमेश्वर का राज्य आपके स्वयं के भीतर ही है) के मुख्य पृष्ठ का है। यह पुस्तक यीशु मसीह की शिक्षाओं के अनुसार मसीही धर्म की व्याख्या करने का प्रयत्न करती है। इस पुस्तक से महात्मा गांधी जी अत्यंत प्रभावित थे।

यीशु मसीह संबंधी गांधी जी के विचार तब और भी स्पष्ट एवं दृढ़ हो गए थे, जब उन्होंने रूसी लेखक लियो टॉलस्टॉय की कृतियों को पढ़ा।

1928 में एक बार जब टॉलस्टॉय की जन्म शताब्दी मनाई जा रही थी, तो उसी से संबंधित एक समारोह को संबोधन करते हुए गांधी जी ने कहा था,‘‘तीन लेखकों - कवि रेचन्द, दूसरे टॉलस्टॉय तथा तीसरे रस्किन का मेरे जीवन पर प्रभाव बहुत अधिक बना रहा है।’’ गांधी जी ने दक्षिण अफ्ऱीका में रहते समय अपने प्रथम वर्षों के दौरान टॉलस्टॉय को पढ़ा था। फिर 1909 में भी उन्होंने इस महान् लेखक टॉलस्टॉय की कृतियां पढ़ीं, जब वह जेल में थे। टॉलस्टॉय स्वयं यीशु मसीह के पहाड़ पर दिए सुसमाचार/उपदेश से अत्यंत प्रभावित थे। टॉलस्टॉय के इन तीन विचारों ने गांधी जी को अत्यंत प्रभावित किया थाः पहाड़ पर यीशु मसीह के नीति-वचन अहिंसा का एक दृढ़ भाव प्रस्तुत करते हैं, सेवा का महत्त्व तथा अपना परिश्रम स्वयं करके अपनी रोटी कमाना। टॉलस्टॉय की पुस्तक ‘दि किंगडम ऑफ़ गॉड इज़ विदइन यू’ (परमेश्वर का राज्य आपके स्वयं के भीतर ही है) में यही मुख्य विचार उभर कर सामने आता है कि अहिंसा का सिद्धांत यीशु मसीह का केन्द्रीय आदर्श था। पश्चिमी देशों में सदियों तक चले राष्ट्रवाद, अनेक युद्धों तथा सामराज्यवाद के कारण ईसाई धर्म को मानने वाले लोग अपने असल (यीशु मसीह के) रास्ते से भटक गए थे।

क्रिमिया (पूर्वी यूरोप का एक रूसी राज्य जो पहले संपूर्ण रूप से रूस में था और अब जिसका कुछ भाग यूक्रेन में है) के युद्ध में लियो टॉलस्टॉय एक ऑफ़ीसर थे। तब उनकी तरक्की हो रही थी परन्तु तब उन्होंने देखा कि एक किसान के जीवन में अधिक नायकत्व है। एक आम सैनिक का दुःख वह देख ही चुके थे परन्तु उन्हें तब एक किसान का जीवन बिताना अधिक अच्छा लगा और उन्होंने समाज के उच्च पदों के ताम-झााम व दिखावे सब त्याग दिए। चर्च के शिकंजे से भी निजात पा ली। वह कहते थे कि वर्तमान चर्च व मसीही समुदाय यीशु मसीह के अहिंसा के सिद्धांत को नहीं अपना रहा है। गांधी जी मैडम प्राईवेट को लिखे पत्र में यह भी कहते हैंः ‘‘बाईबल के नए नियम का अर्थ मुझे और भी स्पष्ट हो गया, जब मैंने टॉलस्टॉय की पुस्तक ‘हारमोनी ऑफ़ दि गॉसपल्ज़’ (चारों इंजीलों की एकरूपता) व उसकी अन्य कृतियों को पढ़ा। क्या पश्चिमी देशों ने तो यीशु मसीह को एक ‘निष्क्रिय विरोधी’ समझ कर नहीं देखा था?’’ गांधी जी का मानना था कि पश्चिमी देशों ने जो यीशु मसीह को ‘पैसिव रिज़िस्टर’ (निष्क्रिय विरोधी) का नाम दिया है, वह ग़लत है। यीशु मसीह तो अपनी बात पर दृढ़तापूर्वक अपनी बात पर डटते थे, इस लिए वह निष्क्रिय कैसे हो सकते हैं। गांधी जी ने टॉलस्टॉय की कृतियों से ही यीशु मसीह के अहिंसा के सिद्धांत को समझ कर सदा के लिए अपना लिया था और उसी सिद्धांत के आधार पर ही भारत को स्वतंत्रता मिल पाई।


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-- -- मेहताब-उद-दीन

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