Tuesday, 25th December, 2018 -- A CHRISTIAN FORT PRESENTATION

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परमेश्वर का राज्य हमें स्वयं परमेश्वर की इच्छानुसार स्थापित करना होगाः गांधी जी



 




 


पवित्र बाईबल के बारे में काफ़ी कुछ जाना गांधी जी ने

Terrence Rynne s Bookअमेरिकन राज्य विस्कॉनसिन के नगर मिलवॉकी स्थित मारक्वेटे युनिवर्सिटी फ़ार पीस-कीपिंग के संस्थापक श्री टैरेंस जे. राईने (जो युनिवर्सिटी में प्रोफ़ैसर तथा अमेरिका के ही राज्य इलिनोय के नगर मुन्देलीन स्थित आर्कडायोसियन सैमिनरी के प्राध्यापक हैं) ने 2008 में एक पुस्तक ‘गांधी एण्ड जीसस - सेविंग पॉवर ऑफ़ नॉन-वायलैंस’ (गांधी एवं यीशु मसीह - बचाने वाली अहिंसा की शक्ति) लिखी थी, जिसे मेरीनॉल, न्यूयार्क के ऑर्बिस बुक्स ने प्रकाशित किया था। श्री टैरेंस अपनी उस पुस्तक में लिखते हैं कि भारत के राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी जी में मसीही लोगों के बारे में जानने की इच्छा थी, जिसके कारण उन्होंने पश्चिमी सभ्यता के मूल्यों का प्रचार करने वाले संस्थानों संबंधी भी जानकारी ली। जब वह इंग्लैण्ड में पढ़ते थे, तब भी उन्हें बहुत बार अपने कुछ ब्रिटिश मित्रों के साथ रहने, बाईबल के बारे में जानने व चर्च जाने के भी कई अवसर प्राप्त हुए थे। ‘‘अमेरिका के बहुत से संस्थान व मसीही प्रचारक तब गांधी जी के समय में भारत में सक्रिय थे जो फ़िज़ूल-ख़र्ची रोकने, स्वच्छता रखने, सख़्त परिश्रम करने एवं अन्य बहुत सी अच्छी बातों का अनुसरण करते थे और भारत के लिए एक अच्छी मिसाल बनते जा रहे थे।’’


विदेशी मसीही प्रचारकों को भारत व भारतियों को समझने की सलाह देते थे गांधी जी

गांधी जी के संकलित कार्यों में ऐसे प्रमाण मौजूद हैं, कि गांधी जी ने कई दर्जनों बार मसीही समुदाय के साथ बातचीत की तथा उन्हें संबोधन किया। गांधी जी विदेशी मसीही प्रचारकों की प्रचार-गतिविधियों को अच्छा नहीं समझते थे। विदेशी प्रचारकों ने गांधी जी से कई बार पूछा था कि वे उनके हिसाब से भारत में बेहतर सेवा कैसे कर सकते हैं तो गांधी जी ने उन्हें हर बार यह उत्तर दिया था कि वे भारत की स्थानीय संस्कृति को बिगाड़ने का प्रयत्न न करें, बल्कि इसकी सराहना करें। उन्होंने प्रचारकों को सलाह दी थी कि वे मसीही धर्म का सीधा प्रचार करने के स्थान पर यीशु मसीह की शिक्षाओं पर चलते हुए जीवन जी कर दिखाएं।

1925 में वाई.एम.सी.ए. (यंग मैन’ज़ क्रिस्चियन ऐसोसिएशन) की कलकत्ता में हुई एक बैठक को संबोधन करते हुए गांधी जी ने कहा थाः ‘‘बिश्प हीबर ने दो पंक्तियां लिखी थीं, जिनमें लिखा था,‘‘प्रत्येक खोज आपको प्रसन्न करेगी और केवल मानव ही निंदनीय है।’’ मुझे लगता है कि बिशप को ऐसा नहीं लिखना चाहिए था। मेरा स्वयं का अनुभव है क्योंकि मैने काफ़ी यात्राएं की हैं .... भारत की इस सुन्दर धरती पर, जहां महान् गंगा, ब्रह्मपुत्र एवं यमुना का जल संचारित होता है, मानव निंदनीय नहीं है। भारत के लोग भी सच की वैसे ही खोज करते हैं, जैसे कि आप या मैं। मुझे लगता है कि आप भारत के जन-समूह को अच्छी प्रकार से समझें।’’


भारत के मसीही केवल यीशु मसीह के बताए सत्य के मार्ग पर ही चलें, प्रचार से कुछ नहीं होता - गांधी जी

गांधी जी की धारणा थी कि भारत का ईसाई धर्म को उस स्थिति में अधिक सराहना प्राप्त होगी, यदि मसीही लोग प्रचार कम करेंगे तथा यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए अपना जीवन व्यतीत करेंगे। वह बहुत बार बाईबल के नये नियम में से अनेकों आयतों के उदाहरण देते हुए कहा करते थे एक सच्चा मसीही वह नहीं है, जो ‘‘सारा दिन परमेशवर, परमेश्वर या ईश्वर-ईश्वर करता रहता है, अपितु ऐसा व्यक्ति सच्चा मसीही है कि जो परमेश्वर की इच्छा को पूर्ण करता है।’’ गांधी जी प्रायः गुलाब के एक फूल की उदाहरण देकर कहा करते थे कि ‘‘एक गुलाब को कोई प्रचार करने की आवश्यकता नहीं होती। वह तो केवल अपनी ख़ुशबू फैलाता है और उसकी वह महक ही उसका प्रचार है। यदि अनेक मसीही प्रचारक भी इकट्ठे होकर वे गुलाब बेचना चाहें, तो वे उतने गुलाब नहीं बेच पाएंगे, जितने उनकी खुशबू को सूंघ कर स्वयं बिकेंगे। धार्मिक एवं आध्यात्मिक जीवन की महक उस गुलाब से कहीं अधिक अच्छी होती है।’’


पश्चिम के मसीही लोगों व यीशु मसीह के सुसमाचार के बीच के अंतर को पहचाना गांधी जी ने

गांधी जी ने जब बाईबल के नए नियम को पढ़ा, तो उन्हें लगा कि पश्चिम के मसीही लोगों व यीशु मसीह के सुसमाचार में बहुत अधिक अंतर है। गांधी जी का कहना था,‘‘कुछ कट्टर प्रकार के मसीही लोगों ने यीशु मसीह के सन्देश को तोड़-मरोड़ कर रख दिया है। यीशु मसीह तो एशियन थे तथा उन्होंने एशिया की वायु में संचारित साँस को पकड़ा और उसी का प्रचार समस्त विश्व में किया और फिर वही पश्चिमी देशों की फ़िज़ा में भी घुला। आप लोगों ने ताकत के दम पर एक अन्य प्रकार की प्रणाली स्थापित की है, जो यीशु मसीह के सिद्धांतों के अनुसार नहीं है, इसी लिए मैं स्वयं को मसीही नहीं कहता।’’


यीशु मसीह द्वारा पहाड़ पर दिए उपदेश से आजीवन प्रभावित रहे गांधी जी

बाईबल के नए नियम की पुस्तक मत्ती के 5, 6 एवं 7 अध्यायों में दर्ज सुसमाचार अनुसार यीशु मसीह ने पहाड़ पर चढ़ कर जो बातें की थीं, गांधी जी उन नीतिगत बातों के सदैव प्रशंसक बने रहे। वह यीशु मसीह के संपूर्ण जीवन से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने यीशु मसीह, बुध एवं जैन धर्मों की शिक्षाओं का प्रभाव व अनुसरण करते हुए ही अपने जीवन में अहिंसा के सिद्धांत को अपनाया था। गांधी जी ने कहा था,‘‘वास्तविक मसीही लोगों से मेरे संपर्क अब बढ़ने लगे हैं और मैंने देखा कि यीशु मसीह ने पहाड़ पर जो बातें कहीं, वही संपूर्ण ईसाईयत/मसीहियत हैं।’’ गांधी जी को लगता था कि मसीही समुदाय को केवल यीशु मसीह की शिक्षाओं का ही अनुसरण करना चाहिए, मसीही पादरी साहिबान की अपनी स्वयं की तरफ़ से बनाई बातों का नहीं।


पश्चिमी देशों के मसीही लोगों को यीशु मसीह के अनुसार न चलने पर दुःखी होते थे गांधी जी

अपनी स्व-जीवनी में गांधी जी ने कई जगह पर इस बात को पश्चिमी देशों के मसीही समुदाय के संदर्भ में उजागर किया था कि ‘‘सरकार में जो लोग हैं, वे सही ढंग से मसीही धर्म के अनुसार नहीं चलते। वे अपने नित्य प्रतिदिन के जीवन में अनेकों बार यीशु मसीह की शिक्षाओं पर चलने से इन्कार करते हैं। विगत 2000 वर्षों के दौरान ईसाई धर्म का विश्व-समाज को अपना एक विशेष योगदान है। परन्तु इन वर्षों में मसीहियत को दाग़ी बना दिया गया है। मैं देखता हूं कि आधुनिक बिश्प मसीहियत के नाम में कत्लेआम तक का भी समर्थन कर रहे हैं। यूरोप में नासरत के यीशु व अमन के शहज़ादे यीशु मसीह को अभी तक ठीक ढंग से अपनाया नहीं गया है और मुझे लगता है कि एक दिन ऐसा आएगा, जब पूर्व दिशा से आने वाले प्रकाश से पश्चिम के लोग यीशु मसीह को अच्छे ढंग से समझ पाएंगे। ... मत्ती के छठे अध्याय की 33वीं आयत में लिखा है कि तुम परमेश्वर के राज्य व धर्म की खोज करो, तुम्हें ये सब वस्तुएं भी मिल जाएंगी। मुझे बाईबल की यह आयत सचमुच बहुत अच्छी लगी। हमने अपने इसी संसार को परमेश्वर के राज्य के अनुसार व उस जैसा बनाना है। मेरा अनुभव है कि परमेश्वर का राज्य हम सब के भीतर ही है और हम इसे केवल ‘परमेश्वर-परमेश्वर’ कह कर ही प्राप्त नहीं कर सकते परन्तु हम परमेश्वर की इच्छा अनुसार जीवन व्यतीत कर सकते हैं। यदि हम यही प्रतीक्षा करते रहें कि परमेश्वर का राज्य कहीं बाहर से आएगा, ऐसा कुछ नहीं होगा परमेश्वर का राज्य हमें स्वयं ही परमेश्वर की इच्छा व उनकी सही शिक्षाओं के अनुसार स्थापित करना होगा।’’


पहले मनुष्य बदलेंगे, फिर वही संसार में परमेश्वर का राज्य स्थापित करेंगे: गांधी जी

महात्मा गांधी जी ने बाईबल का बहुत सघन अध्ययन किया था, यह उनकी टिप्पणियों से स्वाभाविक रूप से स्पष्ट हो जाता है। श्री टैरेंस जे. राईने (अमेरिका) के अनुसार गांधी जी इस बात को नहीं मानते थे कि परमेश्वर की कृपा से विश्व में पहले मनुष्य बदलेंगे तथा फिर यहां पर परमेश्वर का राज्य स्थापित होगा; अपितु उनका कहना था कि पहले मनुष्य बदलेंगे, फिर वही इस संसार में परमेश्वर का राज्य स्थापित करेंगे। परन्तु केवल ईश्वर की कृपा ही उन मनुष्यों को यह राज्य स्थापित करने की शक्ति देगी। अन्य लोगों की सेवा, बुराई का सामना अहिंसा से करने, कभी स्वयं की सराहना न करने या केवल अपनी ही नहीं बल्कि समस्त संसार की मुक्ति के बारे में सोचने से ही परमेश्वर का राज्य स्थापित होगा। अहिंसा के सिद्धांत पर चलने वाले व्यक्ति संबंधी वह लिखते हैंः ‘‘उस व्यक्ति को अहिंसा पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए। ऐसा विश्वास ईश्वर पर विश्वास रखे बग़ैर असंभव है। परमेश्वर की कृपा के बिना वह अपने क्रोध को शांत नहीं कर सकता, भय को त्याग नहीं कर सकता और बदले की भावना को छोड़ नहीं सकता। ऐसा साहस इस विश्वास से आता है कि परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति के मन में वास करता है और परमेश्वर के अस्तित्व में कहीं कोई भय नहीं होना चाहिए।’’


मसीही विचारधारा के अधिक करीब था गांधी जी का लक्ष्य

भारतीय लेखक एस.के. जॉर्ज के अनुसार ‘‘मसीही विश्वास के अनुसार ‘परमेश्वर का राज्य’ धरती पर तब स्थापित होगा, जब परमेश्वर की इच्छा पूर्ण होगी एवं चारों ओर उसकी प्रभुसत्ता स्थापित होगी। महात्मा गांधी जी ने भी धरती पर आधुनिक जीवन पर विचार करते हुए ‘परमेश्वर के राज्य’ के अर्थ-शास्त्र एवं राजनीति का वर्णन किया।’’ टैरेंस के अनुसार ‘‘गांधी जी का लक्ष्य एक अहिंसक समाज की स्थापना करने का था और वह हिन्दु धर्म की ‘मोक्ष’ संबंधी विचारधारा के नहीं बल्कि ‘परमेश्वर के राज्य’ की मसीही विचारधारा के अधिक करीब था।’’


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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