अंग्रेज़ शासकों के भारत में फूट डालने के प्रयत्नों का मसीही समुदाय ने किया था ज़ोरदार विरोध
गांधी जी ने भारत के मसीही समुदाय को दी थी खादी पहनने की विशेष सलाह
3 जनवरी, 1932 को बम्बई लौट कर महात्मा गांधी जी ने लिखा,‘‘प्रिय मसीही मित्रो एवं मेरे देश के सभी जन, मुझे पूर्ण विश्वास है कि देश अब जिस संघर्ष में दाख़िल होने जा रहा है, भारत के समूह मसीही लोग अपने देश के अन्य किसी भी समुदाय से पीछे नहीं रहेंगे। मैं आपको यह कहता हूँ कि यदि आप इस राष्ट्रीय संघर्ष में भाग लेंगे, तो प्रत्येक अल्प-संख्यक को सचमुच किसी कागज़ी सुरक्षा से कहीं अधिक सुरक्षा मिल पाएगी। मैं उस बात पर फिर ज़ोर देता हूँ कि आप अधिक से अधिक खादी पहनें तथा किसी को भी शराब का सेवन न करने दें। मैं देश भर में घूमता हूँ, इसी लिए मैंने अपने देश के निर्धन मसीही भाईयों को देख कर यही महसूस किया है कि उन्हें अन्य किन्हीं भी समुदायों से अधिक खादी की आवश्यकता है। मुझे आशा है कि आज के बाद प्रत्येक मसीही घर में चरखा अवश्य सजा होगा तथा प्रत्येक मसीही शरीर पर खद्दर के ही वस्त्र होंगे, जिन्हें हमारे देश के ग़रीब भाईयों-बहनों ने तैयार किया हुआ होगा।’’
चित्र विवरणः क्राईस्ट युनिवर्सिटी, जो करनाटक की राजधानी बंगलौर (जिसे अब बैंगलुरू के नाम से जानते हैं) में स्थित है। क्राईस्ट युनिवर्सिटी की स्थापना 1969 में एक कॉलेज के रूप में हुई थी। भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 22 जुलाई, 2008 को यू.जी.सी. अधिनियम 1956 के अनुभाग 3 अंतर्गत इस संस्थान को विश्वविद्यालय अर्थात युनिवर्सिटी घोषित कर दिया था।
गांधी जी ने मसीही युवाओं को दिया था नशे के शैतान से दूर रहने का भी परामर्श
अन्त में उन्होंने लिखा था,‘‘और यहां पर शराब पीने की लाहनत भी फैली हुई है। मुझे कभी समझ नहीं आई कि एक मसीही व्यक्ति कोई मादक पेय पदार्थ कैसे ले सकता है? क्या यीशु मसीह ने शैतान से यह नहीं कहा था, जब वह उन्हें भांति-भांति प्रकार के लालच दे रहा था, कि ऐ शैतान! मेरे सामने से दूर हो? क्या नशा शैतान नहीं है? एक मसीही विश्वासी शैतान व यीशु मसीह एक साथ दोनों के साथ कैसे रह सकता है?’’ गांधी जी का यह पत्र 4 जनवरी, 1932 को उस समय के प्रसिद्व समाचार-पत्र ‘बौम्बे क्रौनिकल’ में प्रकाशित हुआ था।
1931 में कांग्रेस की पूना बैठक में भी दी गई थी मसीही युवाओं को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाने की सलाह
ऐसा नहीं था कि मसीही समुदाय इससे पहले गांधी जी की बात नहीं सुनता था, अपितु वह गांधी जी की बात सब से अधिक सुनता था। 28 दिसम्बर, 1931 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की एक बैठक पूना (अब पुणे) में हुई थी। श्री जॉर्डन (बैठक के अध्यक्ष) ने उसे संबोधित करते हुए कहा था कि भारत की समस्याओं का सच्चा समाधान इसी में है गोलमेज़ कान्फ्ऱेंस का काार्य शीघ्रतया सफ़लतापूर्वक निष्पन्न हो जाए। मसीही युवाओं को भारतीय संस्कृति का आदर करने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। उनके स्कूलों में उन्हें राष्ट्रवाद संबंधी बातें पर्ढ़ाईं व समझाई जाएं। उन्होंने यह भी कहा था कि देश में सेना पर बिना वजह अत्यधिक ख़र्च किया जाता है और भारतीय सेना का भारतीयकरण किया जाना चाहिए। कांग्रेस ने उस बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया था कि देश की आर्थिक स्थिति के मद्देनज़र सेना के बजट को कम किया जाना चाहिए। तब गांधी जी भी यही मानते थे कि ब्रिटिश सरकार सेना पर अत्यधिक ख़र्च कर रही है एवं ब्रिटिश भारत में वेतन अधिक हैं। उन्होंने तब इरविन को यह बात अपने पत्र में भी लिखी थी।
भारतीय मसीही समुदाय ने सदा चाहा बहुसंख्यक समुदाय का भला
5 जून, 1929 से लेकर 7 जून, 1935 तक इंग्लैण्ड के प्रधान मंत्री रहे जेम्स रामसे मैकडोनाल्ड (जो लेबर पार्टी के प्रथम प्रधान मंत्री भी थे) ने अगस्त 1932 में एक ‘कम्युनल एवार्ड’ (सांप्रदायिक अर्थात जो धर्म के आधार पर दिया जाता था) की घोषणा की थी। तब वह पुरुस्कार देते समय मसीही समुदाय को छोड़ कर हिन्दु, सिक्ख, मुस्लिम व अन्य सभी संप्रदायों को भी ध्यान में रखा गया था। और तो और तब दबे-कुचले वर्गों को भी इस पुरुस्कार में प्रतिनिधित्व मिला था। इससे देश में जो एकता का माहौल बन रहा था, वह भी ख़राब होने लगा था। वास्तव में यह इंग्लैण्ड सरकार की भारत के नागरिकों को विभिन्न संप्रदायों में बांटने की ही एक बड़ी चाल थी। गांधी जी ने पूना में इसके विरुद्ध भूख-हड़ताल प्रारंभ कर दी थी, जो डॉ. भीम राव अम्बेडकर जी के समझाने से उन्होंने 25 सितम्बर को समाप्त कर दी थी। 28 अकतूबर, 1932 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक पूना में हुई थी। उसमें उस समय के प्रमुख मसीही नेता श्री एस.के. दत्ता ने चेतावनी देते हुए कहा था कि भारतीय ईसाईयों की सुरक्षा इसी में है कि बहुसंख्यक समुदाय में परस्पर सदभावना बनी रहे। कांग्रेस की एक और अखिल भारतीय बैठक 31 दिसम्बर, 1932 को नागपुर में हुई थी। तब श्री एस.के. साल्वे (प्रधान) ने कहा था कि भारत के ईसाईयों को इस ‘कम्युनल एवार्ड’ को पूर्णतया अस्वीकार करना चाहिए क्योंकि उन्हें तो वैसे भी इस पुरुस्कार में उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया था। उन्होंने सरकार को निवेदन किया था कि वह गांधी जी तथा अन्य राजनीतिक कैदियों को रिहा कर दे।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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