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गांधी जी के प्रत्येक आन्दोलन को मसीही समुदाय ने दिया था पूर्ण समर्थन



 




 


भारतीय मसीही समुदाय रहा था गांधी जी के चरखा आन्दोलन में शामिल

1924 में श्री एस.के. दत्ता (जो लैजिसलेटिव असैम्बली अर्थात विधान सभा में एक नामज़द/नामांकित मसीही सदस्य थे) ने इस बात पर अफ़सोस प्रकट किया था कि भारत के अधिकतर मसीही लोग निर्धन हैं परन्तु तब उन्होंने यह नहीं कहा था कि निर्धनता को दूर करने हेतु चरखे का उपयोग किया जाना चाहिए।

Gandhi & Jesus 1926 में जब अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की एक बैठक मद्रास में हुई थी, तो उसमें यह बात कही गई थी कि देश की सभी विधान सभाओं में मसीही समुदाय के लिए सीटें आरक्षित की जानी चाहिएं। उसी बैठक में मसीही नेताओं ने गांधी जी के चरखा कातने का समर्थन किया था और साथ में यह भी कहा गया था कि भारत के निर्धन मसीही परिवारों में घरों में चरखा कातने, हाथ खड्डियों का प्रबन्ध करने, टोकरियां बनाने, एस-मेकिंग इत्यादि जैसे लघु उद्योग स्थापित करने में सहायता की जानी चाहिए। 1928 की कांग्रेस की मद्रास बैठक में भी मसीही समुदाय ने विधान सभा में मौजूद मसीही सदस्यों से आह्वान किया था कि वे अल्कोहल की बिक्री पर पाबन्दी लगवाएं और अल्कोहल का प्रयोग केवल औषधियों के लिए ही किया जाना चाहिए, नशे के तौर पर नहीं।


अन्य समुदायों की तरह मसीही समुदाय भी दो भागों में विभाजित था

वास्तव में उन दिनों भी (आज ही की तरह) भारत का मसीही समुदाय कई भागों में बंटा हुआ था। कुछ मसीही तो महात्मा गांधी जी को अपना समर्थन देते थे, परन्तु कुछ ऐसे भी थे, जो उन्हें समर्थन नहीं देते थे। परन्तु ऐसा विभाजन तो प्रारंभ से अन्य समुदायों में भी रहा है, जैसे कट्टर व मूलवादी हिन्दुओं ने कभी गांधी जी को अपना समर्थन नहीं दिया और वे कभी कांग्रेस के राष्ट्रीय आन्दोलनों में भी शामिल नहीं हुए। और इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि भारत यदि स्वतंत्र हुआ है, तो उसमें सबसे बड़ा योगदान उस समय की कांग्रेस (अब वाली कांग्रेस नहीं) के नित्य प्रतिदिन के आन्दोलनों व विशाल रोष-प्रदर्शनों का ही रहा है। ऐसे प्रदर्शनों से अंग्रेज़ सरकार अक्सर घबरा जाया करती थी क्योंकि उसे डर लगता था कि जल्लियांवाला बाग़ जैसा कोई हिंसक काण्ड कहीं पुनः घटित न हो जाए। इसी प्रकार यदि पंजाबियों की बात करें, तो वे भी अधिकतर (शहीद) भगत सिंह की विचारधारा के अधिक अनुयायी थे, गांधी जी के उतने नहीं थे और उधर बहुत से बंगाली भी गांधी जी को कम परन्तु नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को अधिक मानते थे। अतः मसीही समुदाय भी यदि महात्मा गांधी को समर्थन देने के नाम पर बंटा हुआ था, तो यह कोई अधिक आश्चर्य वाली बात नहीं थी - क्योंकि तब ऐसा अन्य समुदायों में भी पाया जाता है। परन्तु यह प्रायः देखा जाता है कि मसीही समुदाय को अपमानित करने के लिए देश के कुछ स्वार्थी व मूलवादी तत्त्व ऐसी बातों को जानबूझ कर तूल देते हैं और देश के शांतिपूर्ण माहौल को ख़राब करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते।


नमक आन्दोलन में बहुत से मसीही नेताओं व लोगों ने दी थीं ग्रिफ़्तारियां

1930 में जब महात्मा गांधी जी ने नमक आन्दोलन चलाया था, तो उसमें एकमात्र मसीही फादर तीतुस ने भाग लिया था। उसी आन्दोलन में बम्बई, केरल तथा तामिल नाडू के अनेक ईसाईयों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। बम्बई में तब नैश्नलिस्ट क्रिस्चियन पार्टी के संस्थापक व कैथोलिक मसीही जोसेफ़ बैनी व उनके कई मसीही साथियों ने इसी आन्दोलन के दौरान ही अपनी ग्रिफ़्तारियां दी थीं।


गांधी जी ने किया था मसीही समुदाय का आभार प्रकट

1931 में गोलमेज़ कान्फ्ऱेंस के उपरान्त नैश्नलिस्ट क्रिस्चियन पार्टी ने अपने एक वकतव्य में कहा था कि वह देश के साथ है तथा वह किसानों व श्रमिकों के हितों का समर्थन करती है। उन्हें हर हालत में अच्छा पारश्रमिक मिलना चाहिए। भारत के समूह मसीही पूर्णतया कांग्रेस की ऐसी मांगों के साथ हैं। उस वकतव्य पर देश के 10 प्रमुख मसीही नेताओं, जिनमें नैशनलिस्ट क्रिस्चियन पार्टी के सचिव सी.आई. कुरियप्पन भी सम्मिलित थे, के हस्ताक्षर थे। गांधी जी ने इस के लिए मसीही समुदाय का विशेष तौर पर आभार प्रकट किया था। उन्होंने कहा था कि ‘अब कांग्रेस का एक प्रतिनिधि होने के नाते मुझे मसीही समुदाय के हित भी उतने ही प्रिय रहेंगे, जितने कि किसी अन्य समुदाय के। मुझे आशा है कि सभी मसीही मित्र, पुरुष एवं महिलाएं कांग्रेस के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाएंगे। बहुत सी बातें आप कर सकते हैं, जैसे कि हर रोज़ आप किसी निर्धन जन के लिए चरखा चला सकते हैं, आप अपने नित्य प्रतिदिन के वस्त्रों में खादी को अधिक से अधिक अपनाएं और जो शराब पीते हैं, वे उसे सदा के लिए छोड़ दें।’


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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