महात्मा गांधी जी से अधिक प्रेरित हुए मसीही स्वतंत्रता सेनानी
महात्मा गांधी जी से अधिक प्रभावित रहा मसीही समुदाय
1919 के बाद अधिकतर मसीही स्वतंत्रता सेनानियों पर हमने सब से अधिक प्रभाव महात्मा गांधी (हमारे राष्ट्र-पिता) जी का ही देखा है। ज़्यादातर मसीही लोग उन्हीं से प्रभावित हो कर भारत के राष्ट्रीय आन्दोलनों में शामिल होने लगे थे; इस बात से आज कोई भी इन्कार नहीं कर सकता है। जैसा कि हमने पहले भी बताया था कि 1901 में एक समय ऐसा भी आया था, जब गांधी जी एक बार तो यीशु मसीह को ग्रहण करने ही लगे थे परन्तु फिर पता नहीं क्या सोच कर पीछे हट गए थे। इस बात का ज़िक्र उन्होंने अपनी स्व-जीवनी में भी किया है। यीशु मसीह को तो पसन्द करता हूँ परन्तु ईसाईयों को नहींः गांधी जी यीशु मसीह व मसीहियत संबंधी गांधी जी का एक कथन बहुत प्रचलित रहा है - उन्होंने कहा था ‘‘मैं आपके यीशु मसीह को तो पसन्द करता हूँ परन्तु आपके ईसाईयों को नहीं, क्योंकि वे यीशु की शिक्षाओं पर नहीं चलते।’’ रॉबर्ट एल्सबर्ग, के. गोपालास्वामी, एच.एन. मित्रा, एन. बैन्जामिन, क्रांति के. फ़रियस, डी.जी. तेन्दुलकर जैसे कई इतिहासकारों ने गांधी जी के मसीही समुदाय के साथ संबंधों के बारे में काफ़ी खोज की है। दक्षिण अफ्ऱीका में परिवर्तित हुए गांधी जी के विचार श्री मोहनदास कर्मचन्द गांधी पहले तो मसीही समुदाय को पसन्द नहीं करते थे, परन्तु जब वे दक्षिण अफ्ऱीका में उनसे अच्छी प्रकार से मिले, तो उनके विचार परिवर्तित हो गए थे। उससे पूर्व इंग्लैण्ड में भी उन्हें मसीही भाईयों-बहनों को नज़दीक से देखने का अवसर प्राप्त हुआ था। वेल्ज़ के राजकुमार एडवर्ड-आठवें से नहीं मिले थे मसीही स्वतंत्रता सेनानी 28 जुलाई, 1921 को जब वेल्ज़ के राजकुमार एडवर्ड-आठवें (एडवर्ड अल्बर्ट क्रिस्चियन जॉर्ज एण्ड्रयू पैट्रिक डेविड - 23 जून 1893-28 मई 1972, 20 जनवरी 1936 से लेकर 11 दिसम्बर, 1936 तक इंग्लैण्ड व भारत के राजा भी रहे थे) इंग्लैण्ड से भारत आए थे, तो गांधी जी ने उनका बॉयकॉट किया था, क्योंकि उन दिनों देश भर असहयोग आन्दोलन चल रहा था। तब बहुत से भारतीय ईसाईयों ने राजकुमार एडवर्ड का स्वागत ही किया था परन्तु बहुत से मसीही स्वतंत्रता सेनानियों ने ऐसी किसी बात की परवाह न करते हुए अपना ध्यान पूर्णतया राष्ट्रीय आन्दोलन पर ही केन्द्रित रखा था। ‘ऑल इण्डिया क्रिस्चियन कान्फ्ऱेंस’ के स्टैण्ड से विपरीत बहुत से मसीही नेताओं ने असहयोग आन्दोलन में लिया था भाग ऑल इण्डिया क्रिस्चियन कान्फ्ऱेंस ने देश के लिए गांधी जी की सेवाओं की सराहना तो की थी, परन्तु तत्कालीन सरकार के साथ असहयोग करने से इन्कार कर दिया था। परन्तु फिर भी बहुत से ईसाई नेताओं ने असहयोग आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था - ऐसे ही मसीही नेताओं संबंधी हम यहां विस्तारपूर्वक बात कर रहे हैं। नमक आन्दोलन में कुछ मसीही सवतंत्रता सेनानी भी गए थे जेल नमक आन्दोलन के दौरान कुछ मसीही स्वतंत्रता सेनानी जेल भी गए थे। गांधी जी ने पहली गोल-मेज़ कान्फ्ऱेंस का बॉयकॉट किया था परन्तु ईसाईयों ने उसमें भाग लिया था। मसीही समुदाय को स्वतंत्रता संघर्ष की ओर खींचने हेतु ही हुआ था ‘नैश्नलिस्ट क्रिस्चियन पार्टी’ का गठन ‘नैश्नलिस्ट क्रिस्चियन पार्टी’ का गठन केवल भारत के मसीही समुदाय को स्वतंत्रता संघर्ष की ओर खींचने के लिए ही किया गया था। गांधी जी ने इस पार्टी को संबोधित होते हुए कहा था कि देश के संघर्ष में मसीही समुदाय को अन्य लोगों से पीछे नहीं रहना चाहिए। जब गांधी जी ने अंग्रेज़ शासकों के विरुद्ध ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन प्रारंभ किया था, तब भारतीय मसीही समुदाय ने भी एकजुट हो कर अंग्रेज़ हाकिमों को देश छोड़ कर चले जाने के लिए कहा था। गांधी जी ने कहा था - ‘भारत पर भारतीय ईसाईयों का समान हक’ गांधी जी ने यह भी कहा था कि भारत पर भारतीय ईसाईयों का बराबर का हक है परन्तु जब बहुत से ईसाई नेताओं को धमकियां मिलने लगीं थीं, तो गांधी जी को उनकी सुरक्षा की चिन्ता हो गई थी। 14 वर्ष की आयु में मसीही समुदाय के प्रति कुछ और ही धारणा बना ली थी गांधी जी ने गांधी जी ने अपनी स्व-जीवनी में लिखा है कि मसीही मिशनरियों को उन्होंने पहली बार 1883 में 14 वर्ष की आयु में राजकोट (गुजरात) स्थित अपने स्कूल में ही देखा था। तब उन्होंने मसीही लोगों के बारे में कुछ विपरीत धारणा मन में बैठा ली थी। वह लिखते हैं,‘‘वे मसीही मिशनरी हिन्दुओं व उनके देवी-देवताओं को बुरा-भला कहते थे। मुझे वह अच्छा नहीं लगता था। उन्हीं दिनों मैंने सुना था कि एक प्रसिद्ध हिन्दू व्यक्ति क्रिस्चियन बन गए थे। पूरे राजकोट नगर में चर्चा थी कि उस व्यक्ति ने बप्तिसमा ले लिया है और फिर तब उसे गाय का मांस खाना पड़ता था और शराब पीनी पड़ती थी, उसे अपने वस्त्र भी बदलने पड़े थे। वह यूरोपियन कपड़े पहनने लगा था और सर पर अंग्रेज़ी हैट लगाता था... मैंने यह भी सुना था कि वह अब अपने पूर्वजों के धर्म को प्रायः बुरा-भला कहता रहता है। इन सभी बातों से मैं ईसाईयत को अच्छा नहीं समझता था।’’ मसीही समुदाय के प्रति 1893 में बदल गए थे गांधी जी के विचार परन्तु 1893 में उनके विचार ईसाई धर्म व ईसाई समुदाय के प्रति पूर्णतया बदल गए थे। क्योंकि 4 अगस्त, 1925 को उन्होंने कलकत्ता में एक बैठक के दौरान अपनी यादें साझी करते हुए बताया थाः ‘‘जब मैं दक्षिण अफ्ऱीका गया तो मेरे गिर्द अधिकतर भारत के मसीही लोग ही थे। मैं इतने सारे युवा पुरुषों व स्त्रियों को देख कर बहुत आश्चर्यचकित रह गया था कि वे सभी विशुद्ध मसीही थे परन्तु वे अपनी मात्र-भूमि से भी उतना ही प्रेम करते थे। मुझे इस बात से अत्यधिक प्रसन्नता हुई। परन्तु मैंने यह भी देखा कि भारतीय मूल के बहुत से युवाओं ने कभी भारत नहीं देखा था।’’ ‘तिलक स्वराज फ़ण्ड’ में मसीही समुदाय के भरपूर योगदान से अत्यंत प्रसन्न हुए थे गांधी जी गांधी जी ने इराक के नगर बसरा में अपने संबोधन के दौरान यह कहा था कि उन्हें प्रसन्नता इस बात की है कि ‘‘बहुत से भारतीय ईसाईयों ने ‘तिलक स्वराज फ़ण्ड’ में अपना भरपूर योगदान दिया था। और बहुत से मसीही नेताओं ने असहयोग आन्दोलन में भी भाग लिया था। भारत के ईसाई समुदाय की दिलचस्पी अब राष्ट्रीय आन्दोलनों में बढ़ती जा रही है। बहुत से शिक्षित मसीही लोग अब अपनी प्रतिभा का प्रयोग राष्ट्रीय कार्यों हेतु कर रहे हैं।’’ गांधी जी का असहयोग आन्दोलन इच्छा के अनुसार सफ़ल नहीं हो पाया था। उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के समीप एक नगर है चौरी-चौरा। वहां पर असहयोग आन्दोलन के रोष प्रदर्शन के दौरान उग्र भीड़ ने 22 पुलिस कर्मचारियों व अधिकारियों को जीवित जला दिया था। इसी लिए 8 फ़रवरी, 1922 को गांधी जी को इस आन्दोलन को वापिस लेना पड़ा था। गांधी जी के स्वास्थ्य-लाभ हेतु गिर्जा-घरों में हुआ करती थीं प्रार्थना-सभायें, सरकार से की थी गांधी जी को रिहा करने की अपील 10 मार्च, 1922 को उन्हें अहमदाबाद में ग्रिफ़्तार कर लिया गया था व पुणे की यरवड़ा जेल में लाया गया था। उसी कारावास में लगभग दो वर्षों के बाद उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया था और 12 जनवरी, 1924 को उनका अपैन्डेसाईटिस का आप्रेशन किया गया था। जब वह आप्रेशन चल रहा था, तो बम्बई के सभी गिर्जाघरों में मसीही समुदाय ने गांधी जी के शीघ्रतया ठीक होने के लिए विशेष सामूहिक प्रार्थना-सभाओं का आयोजन किया था और तभी मसीही समुदाय ने सरकार से यह अपील भी की थी कि गांधी जी को तुरन्त रिहा किया जाए। गांधी जी का वह आप्रेश्न सफ़ल रहा था। 5 फ़रवरी, 1924 को उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया था। 1922 के कांगेस सत्र में हुई थी मसीही समुदाय के स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लेने संबंधी घोषणा 27 दिसम्बर, 1922 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के लखनऊ सत्र के दौरान स्वागत-समिति (रिसैप्शन कमेटी) के अध्यक्ष श्री जे.आर. चिताम्बर ने यह बात कबूल की थी कि भारत के मसीही लोग गांधी जी के कुछ कार्यक्रमों में भाग लेने लगे हैं; जैसे वे मादक पदार्थों की तस्करी को समाप्त करने, अनपढ़ लोगों को साक्षर बनाने, स्त्रियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने का पूर्ण समर्थन करते हैं। उन्होंने भारत के ईसाई समुदाय को आह्वान किया था कि वे वर्तमान राष्ट्रीय आन्दोलनों में बढ़-चढ़ कर भाग लें। श्री एस.के. दत्ता (प्रधान) ने कहा था ‘‘गांधी जी का अहिंसा का सिद्धांत तो ईसाई धर्म का भी मूल सिद्धांत है।’’ -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - 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