महात्मा गांधी ने 1901 में अपनाना चाहा था यीशु मसीह को, परन्तु...
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आख़िर पीछे क्यों हटे गांधी जी?
महात्मा गांधी के जीवन में 1901 के दौरान कुछ क्षण ऐसे आए थे, जब उन्होंने अपनी मर्ज़ी से अपना धर्म परिवर्तित करके पूर्णतया मसीही (ईसाई) बनना चाहा था। परन्तु उन दिनों अंग्रेज़ शासकों का कुछ अमानवीय व्यवहार देख कर उन्होंने अपना विचार बदल दिया था। फिर किसी अवसर पर उन्होंने यह भी कहा था कि ‘‘यदि सभी मसीही लोग कहीं यीशु मसीह की शिक्षाओं का पूर्ण अनुपालन कर रहे होते, तो इस वक्त समस्त संसार ही मसीही होता।’’ यीशु मसीह को सर्वोच्च माना महात्मा गांधी ने यह बहुत बड़ी बात है, जो राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी जी ने लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व कही थी। उन्होंने अपनी इस बात से एक तो यीशु मसीह को सर्वोच्च माना और दूसरे मसीही भाईयों-बहनों को सदैव उन्हीं की राह पर तथा उन्हीं के प्यार व अहिंसा के सिद्धांतों पर चलने हेतु निवेदन किया। मसीहियत संबंधी कुछ अधिक जानने हेतु महात्मा गांधी स्वयं गए थे काली चरण बैनर्जी के घर महात्मा गांधी जी जब दक्षिण अफ्ऱीका में थे, तब उन्होंने अपने कुछ मसीही मित्रों से यह कहा था कि वह भारत में रहने वाले मसीही लोगों से मिल कर उनके विचार जानेंगे। गांधी जी ने जब गोपाल कृष्ण गोखले के निवास स्थान पर शरण ली हुई थी, तब उन्होंने मसीही स्वतंत्रता सेनानी बंगाल स्थित श्री काली चरण बैनर्जी (श्री के.सी. बैनर्जी संबंधी और अधिक जानने हेतु उनके नाम पर क्लिक करें) के घर जा कर उन्हें मिलने का निर्णय लिया था। गांधी जी वास्तव में श्री बैनर्जी का बहुत आदर करते थे, क्योंकि उन्हें इस बात की जानकारी थी कि श्री बैनर्जी कांग्रेस पार्टी के प्रारंभिक सत्रों में सक्रियतापूर्वक भाग लेकर ख़ूब धुंआधार भाषण भी करते रहे थे। जब गांधी जी श्री के.सी. बैनर्जी के घर पहुंचे, तो श्री बैनर्जी की पत्नी मृत्यु शैय्या पर थीं। गांधी जी ने उस मुलाकात का वर्णन करते हुए लिखा था - ‘‘मैंने के.सी. बैनर्जी से मिलने का समय मांगा था, जो उन्होंने तत्काल दे दिया था। जब मैं वहां गया, तो मैंने देखा कि उनकी पत्नी की हालत काफ़ी ख़राब थी। उनका घर बहुत सादा था। कांग्रेस के सत्रों में मैंने उन्हें देखा था, तब उन्होंने पैंट व कोट पहना हुआ था। परन्तु मुझे यह देख कर प्रसन्नता हुई कि उन्होंने अपने घर में बंगाली धोती व कुर्ता पहने हुए थे। मुझे उनके यह सादा वस्त्र अच्छे लगे, जब कि उस समय मैंने स्वय पारसी कोट व पैंट पहने हुए थे। मैंने उनसे कोई औपचारिक बातचीत करने के स्थान पर अपनी कुछ कठिनाईयां श्री बैनर्जी के सामने रखीं। श्री बैनर्जी ने मुझसे पूछा कि क्या आप ‘मूल पाप के सिद्धांत’ में विश्वास रखते हैं। मैंने उत्तर दिया कि मैं इस बात पर तो विश्वास रखता हूँ। परन्तु हिन्दु धर्म में कोई पुजारी अपने किसी श्रद्धालु के पाप क्षमा नहीं कर सकता परन्तु कुछ मसीही समुदायों में पादरी ऐसा कर सकताा है। पाप की मज़दूरी मृत्यु है, यह बात दरुस्त है। मैंने श्री बैनर्जी को भक्ति मार्ग व भगवद् गीता की बातें बताईं। मैंने तब श्री बैनर्जी को यह भी स्पष्ट किया था कि वह किन्हीं धार्मिक मामलों पर बात नहीं करने आए हैं। बात संतुष्टि की थी और श्री बैनर्जी मेरी कुछ कठिनाईयों के मामले में मुझे संतुष्ट न कर सके परन्तु उस मुलाकात का मुझे लाभ बहुत हुआ।’’ गांधी जी को मिल नहीं पाए थे के.सी. बैनर्जी से कुछ प्रश्नों के उत्तर गांधी जी 1925 में जब कुछ मसीही प्रचारकों से बात कर रहे थे, तो उन्होंने श्री के.सी. बैनर्जी से की अपनी मुलाकात संबंधी उन्हें बताया था। तब उन्होंने यह भी कहा था कि उन्होने 1901 में एक बार स्वयं से यह प्रश्न पूछा था कि क्या उन्हें पूर्ण तौर पर मसीही बन जाना चाहिए। परन्तु मुझे तब कुछ प्रश्नों के उत्तर ईसाई धर्म में मिल न पाए, जिसके कारण उन्होंने अपना यह विचार त्याग कर हिन्दु धर्म में ही रहने का निर्णय लिया था। -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]